लफ़्ज़ ख़ुद में इक तस्वीर है
ये पढ़ा था कहीं मैंने
पर अब, हम तो यहां
चेहरे की ताबीर पढ़ा करते हैं
नफ़रत वो शय है
जो दिल को डरा जाती थी
पर अब तो मोहब्बत से
यहां दिल डरा करते हैं
ज़िंदगी इक कतार है
जहां ख़्वाहिशें लगा करती हैं
मिलने की ख़्वाहिश थी अपनी
पर सबसे पीछे खड़े हम दिखते हैं
तुझ से मैं अब क्या कहूं
और क्या छुपाऊं 'आवाज़'
हालात के तो रंग
मौसम से भी तेज़ बदलते हैं
'आवाज़'
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