Tuesday, February 28, 2017

Allah tu mujhko...

अल्लाह तू मुझको... 
अल्लाह तू मुझको, मेरा बचपन लौटा दे 
छिन गई जो मुझसे, वो दौलत लौटा दे
 अल्लाह तू मुझको, मेरा बचपन लौटा दे 

अम्मी को उनकी खुशियां 
 सर का मेरे साया लौटा दे 
खिलौनो की नहीं अपनों की ख़्वाहिश रही मुझे 
अपनों के संग वो हँसता घर-आँगन लौटा दे  
अल्लाह तू मुझको, मेरा बचपन लौटा दे 


चमकती सी जो दिखती थी, सितारों भरी रातें 
शबनम से नम, सुबह वाला बिस्तर लौटा दे 
सूरज की किरणें जो कभी छेड़ती थी हमें 
अम्मी की डांट से भरे वह लम्हें लौटा दे 
 अल्लाह तू मुझको, मेरा बचपन लौटा दे

 खुले आँगन में वो जलता हुआ चूल्हा लौटा दे 
लकड़ी के तिनकों में गुथा, वह पकौड़ा दिला दे 
सूप में फटके चावल, गेंहूं  की आवाज़ हो जहां 
दुनिया सा लगता हुआ वो मोहल्ला लौटा दे 

 अल्लाह तू मुझको, मेरा बचपन लौटा दे 

सर्दियों की धूप जब दिन भर  ईद सी दिखती थी 
मोहल्ले की औरतें, स्वेटर की एक्सहिबिशन लगाती थीं 
खेल-कूद छोड़-छाड़ कर, बार बार जो अम्मी बुलाती थीं 
कभी स्लीव्स तो कभी कमर से लंबाई नापती थीं 
मोहल्ले की वो हलचल, धूप की क़िस्मत लौटा दे 


अल्लाह तू मुझको, मेरा बचपन लौटा दे 
छिन गई जो मुझसे, वो दौलत लौटा दे
 अल्लाह तू मुझको, मेरा बचपन लौटा दे 

"आवाज़"

 

Thursday, February 23, 2017

Ye sochata hun

यह सोचता हूं अक्सर... 
यह सोचता हूं अक्सर, उस शख्स का 
यह एहसान कैसे चुकाऊं मैं 
मुझे, मुझसे ही प्यार करना सिखा दिया उसने 
यह उसको कैसे समझाऊं  मैं 
मेरे ही दिल की धड़कनें सुनाकर उसने 
मुझको ही मेरी आवाज़ का दीवाना बना दिया 
यह उसको कैसे बतलाऊं मैं 

यह सोचता हूं अक्सर...

 दूर रहकर भी हम  पास हैं, पर डर लगता है 
पास आकर खो न जाऊं मैं
यादों के उस लम्हें में जाकर,  दिल पूछता है 
चंद खुशियों को ले जाऊं मैं 
ज़िन्दगी भी मुझसे कहती है अक्सर, तुझे चाहने के लिए 
मुझे तेरी ज़रुरत भी नहीं 
यह क्या रस्म-इ-उल्फ़त है "आवाज़", उस तक जाऊं 
फिर भी टकरा के लौट आऊं मैं 


यह सोचता हूं अक्सर, उस शख्स का 
यह एहसान कैसे चुकाऊं मैं 
यह सोचता हूं अक्सर...
"आवाज़"

Wednesday, February 15, 2017

khwahishein unki bhi thi...

ख्वाहिशें उनकी भी थीं...


ख्वाहिशें उनकी भी थीं कि अपनी कहें 
इक़रार मेरा भी था कि उनकी सुनें 
पर फासला मीलों का होता, तो तय कर लेता 
दिल की दूरियां हैं, अब क्या कहें किसकी सुनें 
ख्वाहिशें उनकी भी थीं...

ऐसा भी नहीं की दूरियों का अब इलाज नहीं 
ये भी ग़लत होगा गर कह दूं, दिल में कोई राज़ नहीं 
चलो राज़ को अब फ़ाश करें, इश्क़ का फिर से आग़ाज़ करें 
इसी लम्हा, इज़हार करें फिर धड़कनों को परवाज़ करें 
ख्वाहिशें उनकी भी थीं...

जी चाहता है अब, ख़ुद को परिंदा परिंदा बना लूं 
आकाश को छू लूं, बादल को तेरा रिदा बना लूं 
सर पर सजा कर, तेरे हुस्न को आज उजला बना दूं 
एहसास को जगा दूं तेरेतुझे फिर से ज़िंदा बना लूं 

ख्वाहिशें उनकी भी थीं कि अपनी कहें 
इक़रार मेरा भी था कि उनकी सुनें
ख्वाहिशें उनकी भी थीं...

"आवाज़"


khayalon ko ab humne...

ख्यालों को अब हमने

ख्यालों को अब हमने उड़ना सिखा दिया है 
नज़रों को अब दिल का परिंदा बना दिया है 
अब कुछ भी देखेंगे, तो उंचाईंयां गवाही देंगी 
मौत सी सोयी सोच को हमने ज़िंदा बना दिया
ख्यालों को अब हमने उड़ना सिखा दिया है 

जुबां है, कई बार कह के मुकर भी जाय किए हैं 
दिल है जिसने वादों में जां को दाव पर लगा दिए हैं 
हम भी निभाएंगे अपनी कही और सुनी को, देख लेना 
जियेंगे उनको हम, जितने भी इक़रार दोनों ने किए हैं  
ख्यालों को अब हमने उड़ना सिखा दिया है 

एक दिन था ख्यालों ने भी घुटन में गुज़ारें हैं 
इरादे ने भी मिलन को आज-कल में टाले हैं 
यूँ ही इंतज़ार ने कर दिया बेबस रिश्ते को 
हमने ही की पहल, हम ने ही फिर हल निकाले हैं 

और ख्यालों को अब हमने उड़ना सिखा दिया है 
और नज़रों को अब दिल का परिंदा बना दिया है
ख्यालों को अब हमने उड़ना सिखा दिया है 

"आवाज़"