Wednesday, March 7, 2018

बंद किताब बना रखा है


हमने माँ-बाप को 
बंद किताब बना रखा है 
उनकी चाहतों को 
बस ख़्वाब बना रखा है 

कहीं कोनों में पड़े-पड़े 
उन पे धूल जमी जाती है 
हमने कुछ ऐसा ही 
बरताव बना रखा है 

हमने दो लफ़्ज़ क्या पढ़ लिए
दिल के पन्ने पलटना भूल गए  
उनकी परवरिश का हमने 
क्या मज़ाक़ बना रखा है 

पैसों की खनक कानों में 
कुछ ऐसी गूंजी 'आवाज़'
उनकी आह-ओ-कराह को हमने
नज़र बंद बना रखा है 

                             'आवाज़'

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