Saturday, May 2, 2020

मशगूल




अब तो तसव्वुर में भी आने की मोहलत नहीं उन्हें 
हमने भी उनके ख्यालों में ख़ुद को मशगूल कर लिया          
                                                                                                                                                                 'आवाज़'

Wednesday, April 29, 2020

अदा...


ये क्या ज़रूरी है कि हम 'ख़ता' ही करें 
इक 'अदा' से भी इंसा मशहूर होता है.
                                                                 'आवाज़'

ye kya zaroori hai ki hum 'khata' hi karein
ek 'adaa' se bhi insan mashoor hota hai
                                                    'AwaZ'

Tuesday, July 23, 2019

धड़कनें : अब आपकी है...

ये हालात में सिमटे, ख़यालात में डूबे 
जो अल्फ़ाज़ मैंने लिखे हैं 
आप ने पढ़े, खुद से जोड़े 
ये ग़ज़ल मेरी नहीं, अब आपकी है

मीठी याद से रोशन, एहसास से भीगे 
जो ज्योत हमने जलाए हैं 
आप ही जगे, उस रस्ते पे चले 
ये मंज़िल मेरी  नहीं, अब आपकी है

सूरज की तपिश, लम्हों की गर्दिश में 
जो छांव हमने ढूंढी है,
आप आए हैं, लज़्ज़तें उठायीं हैं 
ये परछाइयां मेरी नहीं, अब आपकी हैं 

शबनमी रात, हवाओं से बात 
जो चैन हमें दिलाए है
आपने साझा है, लुत्फ़ भी उठाया है 
ये खुशियां मेरी नहीं, अब आपकी हैं 

दिल के सवालात, इससे जन्में जज़्बात 
हर सिम्त कुछ सजाए है,
अपने गले लगाए हैं, ख़ुद को  बहलाए हैं
ये धड़कनें मेरी नहीं, अब आपकी हैं


                                                     'आवाज़'


Monday, July 22, 2019

शिकन...

शिकन तेरी यादों की 
मेरे आज पे सिलवटें बिछा रही हैं 
मुस्कान के बीच-ओ-बीच 
वो ग़म को बिठा रही हैं 
ये भी अजीब आदतें हैं ख़्वाहिशों की
अपनों के दिलों में भी, नफ़रतें जगा रही हैं 

कल जो थमा बैठे थे, खुद ही दामन अपना 
आज उंगली उनकी, यूंही सरक जाती है
पल भर में ऐसा क्या हुआ 
जो नज़रें तक उनकी बदल जाती हैं 
धड़कनों की जुबां पर, जो कभी नाम था अपना 
वही धड़कनें आज, बस यूंही धड़क जाती हैं 

दर दर घूमा,  ढूंढा ख़ुद को 
मगर अपनों सी राहत, अब अंजानो से आती है 
न शिकवा, न गिला रहा दिल को 
अब किसी से ऐ 'आवाज़'
बेगाने शहर में ही बस 
इस दिल को लज़्ज़तें आती हैं 

                                 'आवाज़'
 

Wednesday, July 3, 2019

बंद सा हो गया हूं...

बंद सा हो गया हूं... 

कल तक जितना भरा था 
आज उतना ख़ाली सा हो गया हूं 
अच्छा है  बाहर से सच दिखता नहीं
आजकल कुछ बंद सा हो गया हूं 

हंसता हूं या रोता हूं 
यहां परवाह किसे किसकी है 
अपना रोना, अपनी हंसी से छुपाकर 
आज कल कुछ ऐक्टर सा हो गया हूं 

चेहरा आइना है दिल का 
डरता हूं, हालात झलक न जाए 
इसलिए दूसरों की सूरत पहनकर 
आज कल कुछ बहुरूपिये सा हो गया हूं 


कल शाम, यूंही चल पड़ा था तन्हा राहों पर 
कुछ दूर तक, यादें भी मेरे साथ चली थीं 
इसी ख़ुशी में मगन मैं 'आवाज़'
आज कल कुछ शायर सा हो गया हूं 


'आवाज़'

Tuesday, May 14, 2019

वक़्त की पीठ पर


वक़्त की  पीठ पर मैंने 
तेरा नाम लिख डाला है 
गया वक़्त है,
कभी लौट के तो आएगा 
उम्मीदों के गुलशन में एक दिन 
फिर से ख़ुशबू बनकर 
तू फ़िज़ाओं में लहराएगा 
मुझसे लिपट जायेगा... 
                                    "आवाज़"