Thursday, July 27, 2017

umar badh rahi hai...

उम्र बढ़ रही है... 

उम्र बढ़ रही है और घटने लगा हूँ मैं 
धीरे धीरे किश्तों में बंटने लगा हूँ मैं 
मुड़ के देखूं तो खुद में सिमटने लगा हूँ मैं 
सामने कल है जिससे लिपटने लगा हूँ मैं 

अब मैं, मैं न रहा किसी की अमानत हूँ मैं 
खुद की सोचूं तो जैसे, खयानत करने लगा हूँ मैं 
आइना भी अब झूठ बोलने से कतराने लगा है 
कहता है हर रोज़ नया चेहरा पहनने लगा हूँ मैं 

ख्वाहिशों का क्या, अधूरी हों तो भी साथ रह लेंगी 
ख़ुशी इसकी है, कि सबकी उम्मीदों पे खरा उतरने लगा हूँ मैं 
इबादतों में अब हर बार खुदा से बस यही  कहता हूँ  
यह जो अपने हैं उनके  बिछड़ने से डरने लगा हूँ मैं 

बूंदें पड़ते ही पेशानी पर, खोने लगा हूँ  मैं
इस भीगी बरसात में, यादों को ओढ़ने लगा हूँ मैं 
तुम भी आ जाओ कुछ पल  के लिए साथ मेरे 
दरीचे की सिम्त अँधेरे में, तुम्हें टटोलने लगा हूँ मैं 

उम्र बढ़ रही है और घटने लगा हूँ मैं 
धीरे धीरे किश्तों में बंटने लगा हूँ मैं 
                                                     - "आवाज़"