Tuesday, March 27, 2018

तू परछाई सी रह जाती है



जब भी मैं, तेरे दीदार को हो आता हूं 
आँखों में मेरे तू, परछाई सी रह जाती है

अक्स तेरा इस क़दर रहता है मौजूद मुझमें 
होठों पे मेरे तू, मुस्कान सी बरस जाती है 

तसव्वुर तेरा हो, तो अंदाज़ भी जुदा रहता है 
आए तू ख़्यालों में ज्यों, ख़ुश्बू सी बिखर जाती है 

मेरे हाथों में हाथ, जिस अंदाज़ से तू रखती है 
हाथों में मेरे छोड़, अपना हाथ चली जाती है 

पड़ते हैं ज़मीं पर, कुछ इस तरह क़दम तेरे 
हवाएं भी उस लम्हा, पाज़ेब सी बज जाती हैं 

जाते हुए पलटकर, जो मुस्कान सी लहराती है 
आँखों में मेरी उस पल, बिजली सी चमक जाती है   

तेरी शीरीं जुबां का असर जो देखा 'आवाज़' 
बातें ना-तमाम, मुझे हर सू सुनाई दे जाती है
                                                                                'आवाज़'


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