Saturday, March 10, 2018

नीले आकाश तले

 चलो नीले आकाश तले 
हरे फर्श पे यूं बिछ जाएं हम 
अपने ख़्यालों की दुनिया को 
बादलों से सजाएं हम 
तितलियों के पर लगा के 
उसी आसमान में उड़ जाएं हम 
कुछ तुम सुनाओ अपने दिल की 
और कुछ अपनी तुम्हें सुनाएं हम 
यूंही बचपन को मन की 
आंगन में बुलाएं हम 
जहां धूप न जला पाई हमको 
कभी बारिश में भी 
न रुक पाए हम 
ठिठुरती सर्दी को भी 
चुटकी में छकाएं हम 
वो भी क्या दौर था 
जब चट्टानों को खुद में पाए हम 
ज़िद्द हमारा दाना पानी 
मस्ती को निवाला बनाए हम 
अब न वो दिन ठहरा 
न रातें ही सो पाएं हम 
पहले सा मौसम अब बिसरा 
पल में जिसमें महक जाएं हम 
वहां अब्र (बादल) न थे धुआं वाले 
तीखी शोर न गाड़ियों की 
यादों में ही सही, पर आओ 
ज़हरीली हवा से बच जाएं हम 
जहां चाल होगी 
कुछ मद्धम-मद्धम 
पर ज़िन्दगी सुहानी पाएं हम 
सब रिश्ते होंगे अपने-अपने 
एक दिल में सब बस जाएं हम 
 जो छूट गए सदियों पीछे 
चलो मिलके 'आवाज़' लगाएं हम 
उन एहसासों को ज़िंदा कर के 
फिर से बचपन को जी जाएं हम

                                            'आवाज़' 
 


No comments:

Post a Comment