Wednesday, March 21, 2018

नशा बहता है



पीता नहीं शराब मगर 
तेरी आँखों से नशा 
मुझे चढ़ जाता है 
जब भी तू सामने होती है 
मन बहका बहका सा रहता है 

आँखें तेरी झील मगर 
नशा मोहब्बत का बहता है
वरना, ऐसा क्यूं हो 
बस देखे से तेरे 
जग उल्टा पुल्टा रहता है 

सोचा था लगा लूं 
ग़ोते मगर 
दिल पगला सोचे है अंजाम 
महज़ देखे से जब 
यूं चढ़ जाती है 
उतरें तो क्या होगा हाल!!! 

बहती शराब सी, 
जो आहिस्ता आहिस्ता 
बिस्तर सी क्यूं मुझे दिखती है 
लहरें जो उठें हौले हौले 
सिलवटों सी क्यूं उभरती हैं 

ख़मोशी तेरे लब की 
बातों की मेरी गवाही दे 
रंग सुर्ख़ कहे लाली का 
आ तुझे इक निशानी दें 

आजा कि इन रातों को 
काजल से तेरी लीप दूं 
मोहब्बत की स्याह राहों में 
ख़ुशियों का तुझे मैं दीप दूं 

कांपती लौ तेरी साँसों की 
चाहत को देती 'आवाज़' है 
तुझमें घुलने पिघलने में ही 
मेरा होता, मुझमें आग़ाज़ है
                                    'आवाज़'

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