पीता नहीं शराब मगर
तेरी आँखों से नशा
मुझे चढ़ जाता है
जब भी तू सामने होती है
मन बहका बहका सा रहता है
आँखें तेरी झील मगर
नशा मोहब्बत का बहता है
वरना, ऐसा क्यूं हो
बस देखे से तेरे
जग उल्टा पुल्टा रहता है
सोचा था लगा लूं
ग़ोते मगर
दिल पगला सोचे है अंजाम
महज़ देखे से जब
यूं चढ़ जाती है
उतरें तो क्या होगा हाल!!!
बहती शराब सी,
जो आहिस्ता आहिस्ता
बिस्तर सी क्यूं मुझे दिखती है
लहरें जो उठें हौले हौले
सिलवटों सी क्यूं उभरती हैं
ख़मोशी तेरे लब की
बातों की मेरी गवाही दे
रंग सुर्ख़ कहे लाली का
आ तुझे इक निशानी दें
आजा कि इन रातों को
काजल से तेरी लीप दूं
मोहब्बत की स्याह राहों में
ख़ुशियों का तुझे मैं दीप दूं
कांपती लौ तेरी साँसों की
चाहत को देती 'आवाज़' है
तुझमें घुलने पिघलने में ही
मेरा होता, मुझमें आग़ाज़ है
'आवाज़'
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