Thursday, March 9, 2017

Zuban ye meri...


जुबां ये मेरी फिसलती बहुत है 
हवा मिले ना मिले सुलगती बहुत है
जुबां ये मेरी फिसलती बहुत है 


कोशिशें हर बार की, कि कुछ मीठा कह जाऊं 
कुछ ऐसा हो मुझसे, कि मैं सबको भा जाऊं  
मगर कुछ  न कुछ मिलावट हो ही जाती है 
 फिर सारी मेहनत, यूं ख़ाक में मिल जाती है 
जुबां ये मेरी फिसलती बहुत है 


ऐ जुबां, तू तो ज़ायक़ा समझती है  
फिर कड़वा और मीठे में धोखा क्यूं है
कुछ तो  ख़बर होगी तुझको भी 
फिर बेख़बर होकर दिल का तोड़ना क्यूं है 
जुबां ये मेरी फिसलती बहुत है 


सोचता हूं, मामला ज़ायके का है 
या फिर ज़माना ही बदल गया 
कहीं मीठे का मतलब अब 
कड़वा तो नहीं हो गया 
अगर ऐसा  है तो ज़ुबां, तू बेफिक्र हो जा
बदलेगा ज़माना,  तू बस ज़िक्र में लग जा 

फिर मैं कभी ये ना कहूंगा 

जुबां ये मेरी फिसलती बहुत है 
हवा मिले ना मिले सुलगती बहुत है


"आवाज़" 

Wednesday, March 8, 2017

Shukriya

चाहता हूं शुक्रिया उनका अदा करता चलूं
चाहता हूं शुक्रिया उनका अदा करता चलूं 
जिनके हाथों संवरा  हूं, सुलझा हूं मैं 
उलझी राहों की ठोकरों से बच बचकर मैं 
जिनकी उंगली पकड़ कर संभाला हूं, समझा हूं मैं 
वो माँ हैं, बहनें, बीवी, बेटी, दोस्त हैं मेरी 
चाहता हूं शुक्रिया उनका अदा करता चलूं 

चाहता हूं हक़ अपना भी अदा करता चलूं  
बच्चे की तरह माँ को दुलारता चलूं 
प्यार से बहनों को भी पुकारता चलूं  
अपनी ज़िन्दगी के हिस्सों को सवांरु और फिर
साथी तेरे क़दमों से क़दम को मिलाता चलूं
चाहता हूं शुक्रिया उनका अदा करता चलूं 

ज़िन्दगी में मेरी, हर रिश्ते का अपना मक़ाम है 
किसी की सुबह है, दिन है तो किसी की शाम है 
प्यार अनमोल है, मोल इसका, न था, न होगा कभी 
सारे अपने हैं, यही अपनापन मेरा अरमान है 
अरमानों के पीछे, हर ग़म को यूंही भुलाता चलूं 
चाहता हूं शुक्रिया उनका अदा करता चलूं 

"आवाज़" 




Thursday, March 2, 2017

Lafz na de sath toh....

लफ्ज़ न दे साथ तो हर साज़ अधूरा है 
जो लफ्ज़ न दे साथ तो हर साज़ अधूरा है 
साज़ बिना आवाज़ का हर अंदाज़ अधूरा है 
जो लफ्ज़ न दे साथ तो हर साज़ अधूरा है 

अंजाम की क्या सोचें अगर आग़ाज़ अधूरा है 
कभी मतला अधूरा है, कभी मकता अधूरा है 
जो लफ्ज़ न दे साथ तो हर साज़ अधूरा है 

वरक़ पलटे ग़ज़ल की तो ये अंदाज़ कहता है 
कोई मुस्कुराया है, फिर क्यों ये संसार अधूरा  है 
जो लफ्ज़ न दे साथ तो हर साज़ अधूरा है 

आफ़ताब न हो मद्धम तो माहताब अधूरा है
रात अधूरी है, रातों का हर ख़्वाब अधूरा है  
जो लफ्ज़ न दे साथ तो हर साज़ अधूरा है 

पायल जो न छनके तो हर राग अधूरा है 
इश्क़ के अफ़साने का हर बाब अधूरा है 
जो लफ्ज़ न दे साथ तो हर साज़ अधूरा है
  
कल खो गया जो यार मेरा तो आज अधूरा है  
साज़ बिना आवाज़ का हर अंदाज़ अधूरा है 
जो लफ्ज़ न दे साथ तो हर साज़ अधूरा है 

"आवाज़"