awaz ki ghazal
Saturday, March 3, 2018
तबाही-ए-इश्क़
ये तबाही-ए-इश्क़ नहीं
तो और क्या है
विर्द-ए-सनम ज़ुबां पे है, लेकिन
ख़्याल-ए-हुस्न में मैं ही नहीं
'आवाज़'
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