Wednesday, March 14, 2018

लिबास-ए-इश्क़

जब कभी ख़्यालों में भी
तेरी गली से गुज़र  जाता हूं 
क़सम तेरी मैं और भी 
मोत्तबर हो जाता हूं 

तू, तेरा रंग और तेरा हुस्न 
मुझे लुभाते हैं ऐसे 
मानूस सी फ़िज़ाओं में 
ख़ुशबू सा लहराता हूं 

पांव ज़मीं पर 
भले ही होता हो मगर 
दिल संग आकाश में 
पंछी बन उड़ जाता हूं 

यादें मेरी जब जब 
तेरे दिल में लाती हैं मुझे 
जानता हूं आँखों से तेरी 
मैं आंसू बन बह जाता हूं 

सोच कर होश भी 
हैरां होता है सब्र पर मेरे
दर्द-ए-जुदाई में भी 
मैं कैसे संभल जाता हूं  

तू इस क़दर लिपटी सी मिलती है 
लिबास-ए-इश्क़ में
देखकर तुझको मैं 'आवाज़'
फिर से दीवाना हो जाता हूं 
                                  'आवाज़'

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