Wednesday, February 28, 2018

मैं वो दिया हूं




 मैं वो दिया हूं 
जो खुली हवा में हूं 
हल्का झोंका भी चाहे 
तो बुझा दे मुझे 
या इलाही तू इक और
एहसान कर दे मुझ पे
ग़ुरूर, लालच, हसद 
की हवा से बचा दे मुझको 

                              'आवाज़'
Respect Humanity

Monday, February 26, 2018

सज़ा मेरी भी मुक़र्रर हो

सज़ा मेरी भी मुक़र्रर हो 
यही चाहता हूँ मैं 
ख़तावार हूं 
ये ख़ुद भी जानता हूं मैं 

रिश्ते में आज़माइश का हुनर 
हमने ही तो सिखाया था उसे 
जब आई इम्तेहां की डगर 
तो उससे क्यूं  भागता हूँ मैं 

क़ुसूर क्या उसका, जो उसने ठाना है 
जो हक़ है, वही तो उसने मांगा है 
हक़ अदा करना नेकी-ए -अज़ीम है 
तो नेकी कमाने से, क्यूं ख़ौफ़ खाता हूं मैं 

ज़माने को हमेशा
'हां' ही भाता है 'आवाज़'
'ना' सुना, तो यूं बेरुख़ी से 
क्यूं मुड़ जाता हूं मैं 

                               'आवाज़'






उम्र दराज़

चाहिए उम्र दराज़,
तो ग़म की दुआ करो 
ख़ुशी के संग ज़िंदगी
कोई पानी का बुलबुला हो
                         'आवाज़'

Saturday, February 24, 2018

मुख़्तसर सा हूं मैं

ऐ ज़िन्दगी तुझे क्या कहूं 
कि आख़िर क्या हूं  मैं 
सब कुछ देकर किसी को 
मुझमें, मुख़्तसर सा हूं मैं 

ना ख़ुशबू मेरी 
ना रोशनी मेरी मुझमें 
फिर भी ख़ुद को 
मुकम्मल जानता हूं मैं 

कुछ यादें कुछ सपने 
कुछ अरमां छुपाता हूं मैं 
जीने के लिए यही छोटे छोटे 
सामां बचाता हूं मैं  

दुनिया में दौलत पर
डांका पड़ता रहा है मगर 
यहां मेरी नींद, मेरा चैन 
ख़ुद ही लुटाता हूं मैं 

एहसास जो मुझमें है 
वो ज़िंदा बताता है मुझे 
क्यूंकि दिल के सारे हालात 
यूंही जान जाता हूं मैं 

समंदर सी ज़िंदगी हो गर 
तो क्या करे 'आवाज़'
कभी चुपके से ख़ुद को 
ख़ुद ही पी जाता हूं मैं  

                                     'आवाज़'


Thursday, February 22, 2018

तू बेगाना हुआ

जब से तू 
मुझ से बेगाना हुआ 
मेरा अपना 
ये सारा ज़माना हुआ, 
ज़िंदगी के सुर 
गिर गए थे जिस दम 
उस पल मौसिक़ी मेरा 
वीराना हुआ,
सुरों की तलाश में 
सदियों फिरा दर-बदर 
बस कुछ नहीं 
वक़्त का आज़माना हुआ 
जुड़े सुर सभी 
जब नए सिरे से 
जीवन मेरा मानो 
फिर से तराना हुआ  

मैंने यूं गाईं 
ज़िंदगी की हसीं ग़ज़लें 
कहानी जो थी पहले 
वो अब अफ़साना हुआ 
जो आपा-धापी में 
बीत गया था 
वही मौसम अब 
आशिक़ाना हुआ. 

ये दिल मेरा 
थोड़ा शायर मिज़ाज है 
झुकी पलकों के उठते ही 
देखो कैसा शायराना हुआ 
ग़ज़ब तो ये है कि कल 
किसी और के नाम से धड़कता था 
आज ये खुद ही 
मेरा दीवाना हुआ 
अब आइना भी देख कर 
कहने लगा है मुझे 
चेहरा तो है 
कुछ पहचाना हुआ 

शुक्र है जो दिल,
चंचल पंछी था मेरा 
कभी इस डाल 
तो कभी उस डाल, मगर 
आज़ाद आसमान में परवाज़ 
अब तो गुज़रा ज़माना हुआ 
लौट कर कितना सुकून मिलता है 
ख़ुद के मकान में 'आवाज़'
ये झोपड़ा भी मेरा 
अब दिलकश आशियाना हुआ

                                             'आवाज़'

Wednesday, February 21, 2018

मोहब्बत

 मोहब्बत तू इतनी निराली क्यूं है
जब तू दिल में है 
तो फिर ये ख़ाली क्यूं है 
न कोई दस्तक 
ना आहट तेरी 
यहां ख़ामोशी पे फिर
ये हरियाली क्यूं है 

तेरे ख़्यालों में भी 
यही आता होगा  
ये इंसा भी क्या क्या 
सोचता होगा 
पर यक़ीन मान 
ग़म में भी मुस्कुराना चाहता हूं 
तू मेरी हो या ना हो 
तुझे सोच कर ही 
जी जाना चाहता हूं

तेरे न होने पर 
तसव्वुर की बदली भी 
ग़ज़ब ढाती है,
होती है घनघोर मगर 
हक़ीक़त की धूप भी 
यहां निकल आती है

ऐ बादल, तू इधर आ 
हक़ीक़त से छुप-छुपाकर 
यूं बरस जा, कि 
दिन को रातों में बदल जा 
तरसते मन 
तड़पते तन को भिगो कर तू 
जलते अरमानों में धुंआ बन जा 


अब अपनी ख़ामोशी को 
तू तोड़ भी दे 
ऐ मोहब्बत जो सच है 
वो बोल भी दे 
क्या दिल की बस्ती 
भाई नहीं तुझे 
या दिलवालों की अदा 
रास आई नहीं तुझे

वक़्त ठहरा है 
ना ठहरेगा किसी दम 
फिर भी तेरी रज़ा के 
तलबगार हैं हम...                                      'आवाज़'

Tuesday, February 20, 2018

गिरहों को खोलते हैं

चलो,
उन गिरहों को खोलते हैं 
जहां सालों से 
कुछ नराज़गियां घुट रही हैं 
उन्हें आज़ाद करते हैं, 
उन शिकवों, गिलों को 
इक अंजाम देते हैं 
रिश्ते में मोहब्बत का 
पैग़ाम देते हैं 

सुनो,
दिल में एक संदूक़ है 
जिसमें पड़ी हुईं कुछ यादों पर 
थोड़ी धूल जम गई है
चलो उन्हें निकालें 
झाड़े, साफ़ करें 
देखें खुशियां अब भी
मुस्कुराती हैं 
या फिर हमें 
मुंह चिढ़ाती हैं 

वादा करो,
गर वो मुस्कुराई 
तो मेरी तरफ़ तुम 
क़दम बढ़ाओगे 
गर हुई उदास तो 
बाहों में मैं भर लाऊंगा 
उसे और हसीं बनाऊंगा 
संग खेलूंगा, खिलखिलाउंगा 
आखिर यादें हमारी हैं 'आवाज़'
यूंही कैसे भूल जाऊंगा 

                                   'आवाज़'


Sunday, February 18, 2018

उलझा रहूं मैं

कुछ तो ग़म दे या रब 
कि उलझा रहूं मैं 
तन्हा ख़ुशी भी हमसे 
अब गुज़ारी नहीं जाती ।

'आवाज़'

Wednesday, February 14, 2018

ख़ुद को लिखा मैंने



कई बार ख़ुद  को ही
ख़ुद लिखा है मैंने
ग़म हो या ख़ुशी हर बार
पहले मुझको ही सुना है मैंने

दुनिया भले ही 
औरों पे ही तन्क़ीद करे 
पर खुद के गिरेबां में भी 
आए दिन देखा है मैंने 

पसीने कीबू आमतौर पर 
कराहियत देती है हमें 
फिर भी ख़ुशी ख़ुशी 
मेहनत को ही चुना है मैंने

ज़माना मुश्किलें तो  
खड़ा करता है मगर
पहले ख़ुद का ही 
डटकर किया सामना मैंने 

ख़्वाहिशों की पतंग ऊंची उड़े 
तो कट जाया करती हैं 
चाहतों के पर कुतरकर 
उसे हद में ही उड़ने दिया मैंने 

आइना सच बोलता है 
लोगों से अक्सर सुना है 'आवाज़' 
ज़िन्दगी के आईने से बारहां 
ख़ुद के बारे में ही पूछा है मैंने

                                                 'आवाज़'

Tuesday, February 13, 2018

sasta makan nahi....


होश क्यूं

इस मौसम में भी मुहब्बत ख़ामोश क्यूं है
मदहोशी की जगह, उसमें ये होश क्यूं है
                                                                        'आवाज़ '

ख़ामोश लब



ये लब ख़ामोश रहें तो रहें 
मेरी आँखों को पढ़ लेना तुम 
दिल ने वरक़ आँखों को बनाया है 

अल्फ़ाज़ हो सके शिक़वा करेंगे 
पर उसका हक़ उससे दे देना तुम 
हर पल उसी ने तो साथ निभाया है 

सांसें भी कुछ उलझी उलझी सी हैं 
पर इससे ना घबरा जाना तुम 
इक मुद्दत हुई, जो हमने सुलझाया है 

हम पास, हम और पास आएंगे 
फिर यूंही मुझमें सिमट जाना तुम 
इन दूरियों ने हमें बहुत तड़पाया है  
                                                     'आवाज़'

Monday, February 12, 2018

तस्वीर किसने निकाली है

यहां दिल में जगह जो ख़ाली है 
ये तस्वीर किसने निकाली है 
बिन उसके सांसें हैं उलझी उलझी 
अब जान भी निकलने वाली है 
                                                      'आवाज़'

तेरा दीदार चाहिए

हवा, दाना-पानी, है ख़ुराक-ए-इंसां मगर 
दिल के वजूद को, बस तेरा दीदार चाहिए 
                                                            'आवाज़'

Thursday, February 1, 2018

यादों की पोटली

आज बस यूं ही यादों की पोटली
 हाथों से अचानक छूट सी गयी 
ज़मीं पर बिखर गए, कुछ खुशियों के 
कुछ दर्द-ओ-आंसू के गीले पल भी 

इन पलों से मिला, तो मैं चहक सा गया 
सच कहूं, तो अंदर ही अंदर महक सा गया 
उदास पल भी, मुझे आज में हंसी लगने लगे 
ख़ुशी के लम्हों में, मैं यूंही बहक सा गया 
वक़्त अपनी रफ़्तार से इस क़दर तेज़ चला  
होश पल में गया, फिर उल्टे पांव बढ़ा 
लेता गया बीते हुए हंसी नज़ारों में मुझे
जहां नज़रों का नशा मुझपे बार बार चढ़ा 
इंतज़ार सब्र का कुछ इस दरजा मुंतज़र था 
भर गया हर वो ज़ख़्म, जो बिछड़कर था 
कितने दोस्त-ओ-अहबाब छूट गए बरसो 
यादें आईं तो हर रिश्ता मुझमें सिमटकर था 
बदक़िस्मती इसे क्या कहिए 'आवाज़' 
ज्यों-ज्यों यादों को समेटना चाहा 
ये अपने आप को ही मिटाती गयी
कुछ भी मुस्तक़िल नहीं यहां, यूं बताती गयी
                                  'आवाज़'