Thursday, March 29, 2018

बुझते सितारे


बुझते सितारे को रोशन कर गयी 
वो जाते-जाते मुझमें ज़िन्दगी भर गयी 

छुआ तक नहीं उसने मुझे मगर 
तारीकियों का मुझको जुगनू कर गयी 

खेलते थे सालों पहले हम संग मगर 
इस उम्र में आकर वो मेरा बचपन दे गयी 

अच्छा होता की मैं आज भी बच्चा ही होता 
आंसू पोछने को  वो अपना दामन दे गयी 

बिछड़े हैं हम भले ही, पर दूर नहीं हुए 
मेरी हालत पे बातों का वो मरहम दे गयी 

 मकनातिसि नहीं तो ये और क्या है 'आवाज़'
      अभी सोचा उसे और उसकी खुशबू छू गयी    
                                                                     'आवाज़'                                
मकनातिसि = Magnatic Power


Tuesday, March 27, 2018

तू परछाई सी रह जाती है



जब भी मैं, तेरे दीदार को हो आता हूं 
आँखों में मेरे तू, परछाई सी रह जाती है

अक्स तेरा इस क़दर रहता है मौजूद मुझमें 
होठों पे मेरे तू, मुस्कान सी बरस जाती है 

तसव्वुर तेरा हो, तो अंदाज़ भी जुदा रहता है 
आए तू ख़्यालों में ज्यों, ख़ुश्बू सी बिखर जाती है 

मेरे हाथों में हाथ, जिस अंदाज़ से तू रखती है 
हाथों में मेरे छोड़, अपना हाथ चली जाती है 

पड़ते हैं ज़मीं पर, कुछ इस तरह क़दम तेरे 
हवाएं भी उस लम्हा, पाज़ेब सी बज जाती हैं 

जाते हुए पलटकर, जो मुस्कान सी लहराती है 
आँखों में मेरी उस पल, बिजली सी चमक जाती है   

तेरी शीरीं जुबां का असर जो देखा 'आवाज़' 
बातें ना-तमाम, मुझे हर सू सुनाई दे जाती है
                                                                                'आवाज़'


Sunday, March 25, 2018

बेतकल्लुफ़ इश्क़


देखना मोहब्बत में तकल्लुफ़ न आ जाए 
बेतकल्लुफ़ इश्क़ की ख़ुशबू ज़िंदा रहती है 
                                                          'आवाज़'

 

Saturday, March 24, 2018

'पहली' बहार हो तुम

तपती धूप में 
ठंढी फुहार हो तुम 
ख़िज़ा में आई 
'पहली' बहार हो तुम 
तुम शरारत भी हो 
तो नज़ाक़त भी तुम हो 
अदा के समंदर में 
उठता ज्वार हो तुम 

हम तो 
सादा तबियत ठहरे 
अरमां की खेती 
सींचा करते हैं 
दूर से ही तुम्हें 
तका करते हैं  
मन में ही तुम्हें 
पूजा करते हैं 

ज़िन्दगी इक बार 
मिलती है
सब अपने-अपने 
हिस्से की जी लेते हैं 
कोई हक़ीक़त कर लेता है 
ख़्वाबों को 
और हम ख़्वाबों में 
मोहब्बत कर लेते हैं 

ये दिल है 
तन्हा है बेचारा 
कितना बोझ डालूं 
अरमानों के 
वाक़िफ़ हूं मैं भी 
दिल भी इससे अंजान नहीं
किसी को मिलता कहाँ है 
मुकम्मल, दिल का जहां कहीं 

किसी के बिना कोई 'आवाज़' 
कभी मरता नहीं 
तपिश लाख पड़े 
सांसों के समंदर पर 
उलझ जाए भले 
मगर ये सूखता नहीं
                             'आवाज़'






Friday, March 23, 2018

हम बिखर जाएंगे



तजुर्बा-ए-हुस्न 
यह कहता है हमें 
ना खोलो गिरहें 
कि हम बिखर जाएंगे 

जी लेंगे प्यार के 
इक-तरफ़ा पहलू को भी 
ना कह दिया गर उसने 
तो फिर हम किधर जाएंगे 

दर्द में मिठास 
ऐसे ही मिलता है मगर 
दिल टूटे तो, हर टुकड़े में 
दिलबर ही नज़र आएंगे 

मुझसे बिछड़कर, वो ख़ुश हैं 
ये खबर है हमें 
यही बात वो जान लें 
तो वो कैसे जी पाएंगे 

दिल और चेहरे का 
याराना न रहे तो अच्छा है 
उन्हें चेहरा पढ़ना आता है 
सारे हालात वो समझ जाएंगे 

मुस्कुराहट का मतलब 
हर बार ख़ुशी नहीं होता 
फिर भी हज़ारों सवाल 
इक मुस्कान में दब जाएंगे

इक बेवफ़ाई से दिल 
सुना है संभल जाता है
फिर भी उतर आए कोई 
तो क्या हम बदल जाएंगे 

वो जहाँ भी रहें 
शाद-ओ-आबाद रहे 'आवाज़'
दर्द जितना भी हो दिल में, मगर 
ज़ुबाँ पर उनके लिए, हम दुआ लाएंगे 

                                                                    'आवाज़'


Wednesday, March 21, 2018

नशा बहता है



पीता नहीं शराब मगर 
तेरी आँखों से नशा 
मुझे चढ़ जाता है 
जब भी तू सामने होती है 
मन बहका बहका सा रहता है 

आँखें तेरी झील मगर 
नशा मोहब्बत का बहता है
वरना, ऐसा क्यूं हो 
बस देखे से तेरे 
जग उल्टा पुल्टा रहता है 

सोचा था लगा लूं 
ग़ोते मगर 
दिल पगला सोचे है अंजाम 
महज़ देखे से जब 
यूं चढ़ जाती है 
उतरें तो क्या होगा हाल!!! 

बहती शराब सी, 
जो आहिस्ता आहिस्ता 
बिस्तर सी क्यूं मुझे दिखती है 
लहरें जो उठें हौले हौले 
सिलवटों सी क्यूं उभरती हैं 

ख़मोशी तेरे लब की 
बातों की मेरी गवाही दे 
रंग सुर्ख़ कहे लाली का 
आ तुझे इक निशानी दें 

आजा कि इन रातों को 
काजल से तेरी लीप दूं 
मोहब्बत की स्याह राहों में 
ख़ुशियों का तुझे मैं दीप दूं 

कांपती लौ तेरी साँसों की 
चाहत को देती 'आवाज़' है 
तुझमें घुलने पिघलने में ही 
मेरा होता, मुझमें आग़ाज़ है
                                    'आवाज़'

Monday, March 19, 2018

तू इत्र है मेरा

तू ज़िक्र है मेरा 
तू ही फ़िक्र मेरा 
यादों के जिस्म में 
तू ही इत्र है मेरा 

तू मेरा आज है 
तू ही कल मेरा 
तू ही मेरी लहरें 
तू ही साहिल मेरा 

 तू ही आग़ाज़ 
तू ही अंजाम मेरा
तू ही उन्वान (टाइटल/हैडिंग)
तू ही मज़मून मेरा 

तू ही हलचल 
दिल का 
और तू ही 
सुकून मेरा 

ओझल है मुझसे 
फिर भी 
रग रग में तेरे 
है वजूद मेरा 

हवा मेरी, घटा मेरी 
दिल की बस्ती की 
सारी गलियां मेरी 
हर रास्ता मेरा 

ख्यालों के पंख लगा के
उड़ता हूँ जहाँ 
वो वादियां मेरी 
वो आसमां मेरा 

तू आज में मेरे
मर्ज़ का इलाज है 
मैं गीत हूं तेरा
और तू साज़ मेरा 

तू धड़कन है 
मैं खनकती 'आवाज़'
जिसे सिर्फ़ मैं  जान सकूं 
वही हूं राज़ तेरा 
                         'आवाज़'
 

 



Saturday, March 17, 2018

हसीं पैग़ाम लिखें

ऐ दिल तू भी चल 
ख़्यालों की इक दास्तान लिखें 
मेहबूब को मुहब्बत भरा 
कुछ हसीं पैग़ाम लिखें

आग़ाज़-ए-उल्फ़त 
हो मेरी उससे 
फिर मेरे इश्क़ का 
उसे अंजाम लिखें

उसे ही मुहब्बत की 
हर सुब्ह तो 
उसी को धड़कनों की 
शाम लिखें

वो दिल की मलिका 
हो मेरी और 
ख़ुद को हम 
उसका ग़ुलाम लिखें

वो हमनवां हमदम है मेरा,
चलो अब उसे हमख़्याल लिखें 
चाहतों के इस सफर में उसे 
मेरा हमक़दम, हमज़बान लिखें

मेरी सांसों में जो ख़ुशबू है
उसे उसके नाम लिखें, 
उसके इश्क़ में इसी दम 
अपनी उम्र को नातमाम लिखें

दिल की बंजर ज़मीन पर 
उसे प्यार का गुलिस्तान लिखें 
तन्हाई की तपती धूप में 
घटाओं में लिपटा आसमान लिखें

जज़्ब-ए-दिल के हर हर्फ़ को 
सुर्ख लबों से उसके 
चलो कोरी धड़कनों पर 
सुरीली 'आवाज़' लिखें 

                               'आवाज़'

Friday, March 16, 2018

नुमाईश-ए-ग़म



इस जहां का भी 
अजब तौर देखा मैंने 
नुमाईश-ए-ग़म को यहां 
सब 'ग़ज़ल' समझते हैं 

ग़म से तपते
अल्फ़ाज़ भी हो गर 
जूनून-ए-ख़ुलूस  से 
सब, वाह! वाह! करते हैं 

दर्द मेरा गहराई में 
जैसे जैसे उतरता है 
यारों के दिल भी
शोखियों से मचलते हैं

ख़ुदा ना करे डूब जाऊं 
इस गहरे समंदर में 
वरना तमाशाई तो यहां 
सरेआम मिलते हैं 

ज़ायक़े का अंदाज़ भी 
हुआ कुछ निराला देखो 
अब ख़ुशी अपनी और दर्द 
औरों के ही अच्छे लगते हैं  

ज़ुबान-ए-दिल कहां 
किसी की हद में रही 'आवाज़'
जो तन लागे  ये दर्द 
बस वो ही समझते हैं  
                                'आवाज़'


Wednesday, March 14, 2018

लिबास-ए-इश्क़

जब कभी ख़्यालों में भी
तेरी गली से गुज़र  जाता हूं 
क़सम तेरी मैं और भी 
मोत्तबर हो जाता हूं 

तू, तेरा रंग और तेरा हुस्न 
मुझे लुभाते हैं ऐसे 
मानूस सी फ़िज़ाओं में 
ख़ुशबू सा लहराता हूं 

पांव ज़मीं पर 
भले ही होता हो मगर 
दिल संग आकाश में 
पंछी बन उड़ जाता हूं 

यादें मेरी जब जब 
तेरे दिल में लाती हैं मुझे 
जानता हूं आँखों से तेरी 
मैं आंसू बन बह जाता हूं 

सोच कर होश भी 
हैरां होता है सब्र पर मेरे
दर्द-ए-जुदाई में भी 
मैं कैसे संभल जाता हूं  

तू इस क़दर लिपटी सी मिलती है 
लिबास-ए-इश्क़ में
देखकर तुझको मैं 'आवाज़'
फिर से दीवाना हो जाता हूं 
                                  'आवाज़'

Tuesday, March 13, 2018

यादें पिघलती हैं '

हर रोज़ खुद से ही 
अपनी शुरुआत होती है 
बातें नहीं बस हल्की सी 
मुझसे मेरी मुलाक़ात होती है 

नाज़ुक़ किरणें आती तो 
अब भी उसी अदा से हैं 
पर रूह से उसकी गुज़र 
कुछ रूखे अंदाज़ से होती है

लम्हों की चुस्कियों का 
ज़ायक़ा कुछ बदल सा गया है 
चीज़ें तो वही डाली मैंने पर
उसे तेरी कमी शायद खलती है 

दिन मज़दूरों सा
थक के चूर होता है
फिर भी रोज़ चूल्हे सी 
यहाँ हर रात जलती है 

तपती रातों के सन्नाटेपन से 
इक 'आवाज़' निकलती है 
शायद फिर से पलट गए हों वो पन्ने 
जहाँ हर लम्हा कुछ यादें पिघलती हैं 
                                                                         'आवाज़'

Monday, March 12, 2018

अब उनकी बारी है

ज़िंदगी में छोटी छोटी बातें 
हमसे क्यूं बिसर जाती हैं 
घर में माँ, बीवी, बहनें 
पहले क्यूं नहीं खाती हैं 

ताज़ी चीज़ें ख़ुशी-ख़ुशी 
सब को वो खिलाती हैं 
अपने लिए वो अकसर 
ठंढी-बासी ही बचाती हैं 

क्यूं होता है ऐसा 
जो रिवाज बन गया है 
हर फैसले में अकसर 
आख़िर में पूछी जाती हैं 

सब्र का तो जैसे 
वो बीड़ा उठा लेतीं हैं 
रोज़े मिन्नतों से अपने
घर को बचा लेतीं हैं 

हया, बंदिशें ये सब 
बस उनके लिए ही क्यूं
मर्दों की इस बस्ती में 
मज़लूम सी वो ही क्यूं

हम करें कुछ बेहतर तो 
वाह-वाही दूर तलक जाती है
वो करें तो उनके हिस्से 
इक मुस्कान तक नहीं आती है 

माना कि ज़माना बदल गया 
कांधे से हमारे उनका 
कांधा भी मिल गया 
फिर भी होती हैं जब शादियां 
तो वो ही दहेज़ क्यूं लाती हैं 

हर शौक़ अपना, वही क्यूं छोड़ें 
आसमां वो भी छू सकती हैं 
चलिए पंख उनके 
उन्हें लौटा दें 'आवाज़'
अब उनके उड़ने की बारी है
                                                                'आवाज़'

     

Saturday, March 10, 2018

नीले आकाश तले

 चलो नीले आकाश तले 
हरे फर्श पे यूं बिछ जाएं हम 
अपने ख़्यालों की दुनिया को 
बादलों से सजाएं हम 
तितलियों के पर लगा के 
उसी आसमान में उड़ जाएं हम 
कुछ तुम सुनाओ अपने दिल की 
और कुछ अपनी तुम्हें सुनाएं हम 
यूंही बचपन को मन की 
आंगन में बुलाएं हम 
जहां धूप न जला पाई हमको 
कभी बारिश में भी 
न रुक पाए हम 
ठिठुरती सर्दी को भी 
चुटकी में छकाएं हम 
वो भी क्या दौर था 
जब चट्टानों को खुद में पाए हम 
ज़िद्द हमारा दाना पानी 
मस्ती को निवाला बनाए हम 
अब न वो दिन ठहरा 
न रातें ही सो पाएं हम 
पहले सा मौसम अब बिसरा 
पल में जिसमें महक जाएं हम 
वहां अब्र (बादल) न थे धुआं वाले 
तीखी शोर न गाड़ियों की 
यादों में ही सही, पर आओ 
ज़हरीली हवा से बच जाएं हम 
जहां चाल होगी 
कुछ मद्धम-मद्धम 
पर ज़िन्दगी सुहानी पाएं हम 
सब रिश्ते होंगे अपने-अपने 
एक दिल में सब बस जाएं हम 
 जो छूट गए सदियों पीछे 
चलो मिलके 'आवाज़' लगाएं हम 
उन एहसासों को ज़िंदा कर के 
फिर से बचपन को जी जाएं हम

                                            'आवाज़' 
 


Thursday, March 8, 2018

रिश्ते में ज़ोर नहीं होता

रिश्ते में कोई ज़ोर नहीं होता 
प्यार का कोई छोर नहीं होता 
ये वो समंदर है जिसमें
कूदते तो सब हैं मगर 
पर कोई भी इनमें 
ग़ोताखोर नहीं होता 

गुच्छे में जब तक हों फूल 
ख़ुश्बुओं का शोर रहता है 
बिखर जाए सर-इ-राह अगर 
इनका कोई मोल नहीं होता 

बहते रहें जज़्बात 
तो मन में कोई मैल नहीं होता 
सच्चे हों गर एहसास 
तो कोई ग़ैर नहीं होता 

दो, किसी भी नाम से 'आवाज़'
तो रिश्ता नहीं बदलता 
जो बस चुका हो रूह में 
वो इंसा नहीं निकलता  
                                     'आवाज़'

Wednesday, March 7, 2018

बंद किताब बना रखा है


हमने माँ-बाप को 
बंद किताब बना रखा है 
उनकी चाहतों को 
बस ख़्वाब बना रखा है 

कहीं कोनों में पड़े-पड़े 
उन पे धूल जमी जाती है 
हमने कुछ ऐसा ही 
बरताव बना रखा है 

हमने दो लफ़्ज़ क्या पढ़ लिए
दिल के पन्ने पलटना भूल गए  
उनकी परवरिश का हमने 
क्या मज़ाक़ बना रखा है 

पैसों की खनक कानों में 
कुछ ऐसी गूंजी 'आवाज़'
उनकी आह-ओ-कराह को हमने
नज़र बंद बना रखा है 

                             'आवाज़'

Monday, March 5, 2018

लफ़्ज़


लफ़्ज़ ख़ुद में इक तस्वीर है 
ये पढ़ा था कहीं मैंने 
पर अब, हम तो यहां
चेहरे की ताबीर पढ़ा करते हैं 

नफ़रत वो शय है 
जो दिल को डरा जाती थी 
पर अब तो मोहब्बत से 
यहां दिल डरा करते हैं 

ज़िंदगी इक कतार है 
जहां ख़्वाहिशें लगा करती हैं 
मिलने की ख़्वाहिश थी अपनी 
पर सबसे पीछे खड़े हम दिखते हैं 

तुझ से मैं अब क्या कहूं 
और क्या छुपाऊं 'आवाज़'
हालात के तो रंग 
मौसम से भी तेज़ बदलते हैं 
                                                    'आवाज़'

मैं मुस्कुरा भी दूं अगर



मैं मुस्कुरा भी दूं अगर 
तो क्या होगा 
सच के ऊपर 
झूठ ही तो जड़ा होगा 

उनकी हंसी तो हर दिल को 
अमीर बनाती है 
वो उदास रहे गर 
तो ग़रीब सारा मआशरा होगा 

माना उनके देखे से 
चेहरे पे आ जाएगी रौनक़ 
पर मेरा ज़ख़्म जो पहले था 
तब भी तो हरा होगा 

मेरी ख़ामियां भी गर 
उनकी अदा बन जाए 
तो फिर यक़ीं जानो 
कोई नया ही माजरा होगा 

मैं क्या! मेरी तो यूंही 
गुज़र जाएगी 'आवाज़'
दुःख ये है कि तक़ल्लुफ़ में 
कोई ख़ुद ही फ़ना  होगा 


              'आवाज़'


Saturday, March 3, 2018

तबाही-ए-इश्क़

ये तबाही-ए-इश्क़ नहीं 
तो और क्या है 
विर्द-ए-सनम ज़ुबां पे है, लेकिन 
ख़्याल-ए-हुस्न में मैं ही नहीं 
                                      'आवाज़'

Thursday, March 1, 2018

रंग-ए-मोहब्बत


जितने भी रंग-ओ-गुलाल हैं 
ऐ दुनिया, ये तेरे लिए हैं 
मुझपे रंग-ए-मोहब्बत ऐसे चढ़ा 
मैं तो सतरंगी हो गया 
                                          'आवाज़'