आज बस यूं ही यादों की पोटली
हाथों से अचानक छूट सी गयी
ज़मीं पर बिखर गए, कुछ खुशियों के
कुछ दर्द-ओ-आंसू के गीले पल भी
हाथों से अचानक छूट सी गयी
ज़मीं पर बिखर गए, कुछ खुशियों के
कुछ दर्द-ओ-आंसू के गीले पल भी
इन पलों से मिला, तो मैं चहक सा गया
सच कहूं, तो अंदर ही अंदर महक सा गया
उदास पल भी, मुझे आज में हंसी लगने लगे
ख़ुशी के लम्हों में, मैं यूंही बहक सा गया
वक़्त अपनी रफ़्तार से इस क़दर तेज़ चला
होश पल में गया, फिर उल्टे पांव बढ़ा
लेता गया बीते हुए हंसी नज़ारों में मुझे
जहां नज़रों का नशा मुझपे बार बार चढ़ा
इंतज़ार सब्र का कुछ इस दरजा मुंतज़र था
भर गया हर वो ज़ख़्म, जो बिछड़कर था
कितने दोस्त-ओ-अहबाब छूट गए बरसो
यादें आईं तो हर रिश्ता मुझमें सिमटकर था
बदक़िस्मती इसे क्या कहिए 'आवाज़'
ज्यों-ज्यों यादों को समेटना चाहा
ये अपने आप को ही मिटाती गयी
कुछ भी मुस्तक़िल नहीं यहां, यूं बताती गयी
'आवाज़'
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