Wednesday, February 14, 2018

ख़ुद को लिखा मैंने



कई बार ख़ुद  को ही
ख़ुद लिखा है मैंने
ग़म हो या ख़ुशी हर बार
पहले मुझको ही सुना है मैंने

दुनिया भले ही 
औरों पे ही तन्क़ीद करे 
पर खुद के गिरेबां में भी 
आए दिन देखा है मैंने 

पसीने कीबू आमतौर पर 
कराहियत देती है हमें 
फिर भी ख़ुशी ख़ुशी 
मेहनत को ही चुना है मैंने

ज़माना मुश्किलें तो  
खड़ा करता है मगर
पहले ख़ुद का ही 
डटकर किया सामना मैंने 

ख़्वाहिशों की पतंग ऊंची उड़े 
तो कट जाया करती हैं 
चाहतों के पर कुतरकर 
उसे हद में ही उड़ने दिया मैंने 

आइना सच बोलता है 
लोगों से अक्सर सुना है 'आवाज़' 
ज़िन्दगी के आईने से बारहां 
ख़ुद के बारे में ही पूछा है मैंने

                                                 'आवाज़'

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