कई बार ख़ुद को ही
ख़ुद लिखा है मैंने
ग़म हो या ख़ुशी हर बार
पहले मुझको ही सुना है मैंने
दुनिया भले ही
औरों पे ही तन्क़ीद करे
पर खुद के गिरेबां में भी
आए दिन देखा है मैंने
पसीने कीबू आमतौर पर
कराहियत देती है हमें
फिर भी ख़ुशी ख़ुशी
मेहनत को ही चुना है मैंने
ज़माना मुश्किलें तो
खड़ा करता है मगर
पहले ख़ुद का ही
डटकर किया सामना मैंने
ख़्वाहिशों की पतंग ऊंची उड़े
तो कट जाया करती हैं
चाहतों के पर कुतरकर
उसे हद में ही उड़ने दिया मैंने
आइना सच बोलता है
लोगों से अक्सर सुना है 'आवाज़'
ज़िन्दगी के आईने से बारहां
ख़ुद के बारे में ही पूछा है मैंने
'आवाज़'
Tabhe to tumhari her rachna lajawaab hoti hai...
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