Sunday, February 18, 2018

उलझा रहूं मैं

कुछ तो ग़म दे या रब 
कि उलझा रहूं मैं 
तन्हा ख़ुशी भी हमसे 
अब गुज़ारी नहीं जाती ।

'आवाज़'

No comments:

Post a Comment