awaz ki ghazal
Sunday, February 18, 2018
उलझा रहूं मैं
कुछ तो ग़म दे या रब
कि उलझा रहूं मैं
तन्हा ख़ुशी भी हमसे
अब
गुज़ारी नहीं जाती ।
'आवाज़'
No comments:
Post a Comment
Newer Post
Older Post
Home
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment