सज़ा मेरी भी मुक़र्रर हो
यही चाहता हूँ मैं
ख़तावार हूं
ये ख़ुद भी जानता हूं मैं
रिश्ते में आज़माइश का हुनर
हमने ही तो सिखाया था उसे
जब आई इम्तेहां की डगर
तो उससे क्यूं भागता हूँ मैं
क़ुसूर क्या उसका, जो उसने ठाना है
जो हक़ है, वही तो उसने मांगा है
हक़ अदा करना नेकी-ए -अज़ीम है
तो नेकी कमाने से, क्यूं ख़ौफ़ खाता हूं मैं
ज़माने को हमेशा
'हां' ही भाता है 'आवाज़'
'ना' सुना, तो यूं बेरुख़ी से
क्यूं मुड़ जाता हूं मैं
'आवाज़'
यही चाहता हूँ मैं
ख़तावार हूं
ये ख़ुद भी जानता हूं मैं
रिश्ते में आज़माइश का हुनर
हमने ही तो सिखाया था उसे
जब आई इम्तेहां की डगर
तो उससे क्यूं भागता हूँ मैं
क़ुसूर क्या उसका, जो उसने ठाना है
जो हक़ है, वही तो उसने मांगा है
हक़ अदा करना नेकी-ए -अज़ीम है
तो नेकी कमाने से, क्यूं ख़ौफ़ खाता हूं मैं
ज़माने को हमेशा
'हां' ही भाता है 'आवाज़'
'ना' सुना, तो यूं बेरुख़ी से
क्यूं मुड़ जाता हूं मैं
'आवाज़'
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