Tuesday, February 20, 2018

गिरहों को खोलते हैं

चलो,
उन गिरहों को खोलते हैं 
जहां सालों से 
कुछ नराज़गियां घुट रही हैं 
उन्हें आज़ाद करते हैं, 
उन शिकवों, गिलों को 
इक अंजाम देते हैं 
रिश्ते में मोहब्बत का 
पैग़ाम देते हैं 

सुनो,
दिल में एक संदूक़ है 
जिसमें पड़ी हुईं कुछ यादों पर 
थोड़ी धूल जम गई है
चलो उन्हें निकालें 
झाड़े, साफ़ करें 
देखें खुशियां अब भी
मुस्कुराती हैं 
या फिर हमें 
मुंह चिढ़ाती हैं 

वादा करो,
गर वो मुस्कुराई 
तो मेरी तरफ़ तुम 
क़दम बढ़ाओगे 
गर हुई उदास तो 
बाहों में मैं भर लाऊंगा 
उसे और हसीं बनाऊंगा 
संग खेलूंगा, खिलखिलाउंगा 
आखिर यादें हमारी हैं 'आवाज़'
यूंही कैसे भूल जाऊंगा 

                                   'आवाज़'


1 comment:

  1. Girho ko kholte hai...yaadeiṅ muskurayngi..👏
    Beautiful 👌

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