ऐ ज़िन्दगी तुझे क्या कहूं
कि आख़िर क्या हूं मैं
सब कुछ देकर किसी को
मुझमें, मुख़्तसर सा हूं मैं
ना ख़ुशबू मेरी
ना रोशनी मेरी मुझमें
फिर भी ख़ुद को
मुकम्मल जानता हूं मैं
कुछ यादें कुछ सपने
कुछ अरमां छुपाता हूं मैं
जीने के लिए यही छोटे छोटे
सामां बचाता हूं मैं
दुनिया में दौलत पर
डांका पड़ता रहा है मगर
यहां मेरी नींद, मेरा चैन
ख़ुद ही लुटाता हूं मैं
एहसास जो मुझमें है
वो ज़िंदा बताता है मुझे
क्यूंकि दिल के सारे हालात
यूंही जान जाता हूं मैं
समंदर सी ज़िंदगी हो गर
तो क्या करे 'आवाज़'
कभी चुपके से ख़ुद को
ख़ुद ही पी जाता हूं मैं
'आवाज़'
कि आख़िर क्या हूं मैं
सब कुछ देकर किसी को
मुझमें, मुख़्तसर सा हूं मैं
ना ख़ुशबू मेरी
ना रोशनी मेरी मुझमें
फिर भी ख़ुद को
मुकम्मल जानता हूं मैं
कुछ यादें कुछ सपने
कुछ अरमां छुपाता हूं मैं
जीने के लिए यही छोटे छोटे
सामां बचाता हूं मैं
दुनिया में दौलत पर
डांका पड़ता रहा है मगर
यहां मेरी नींद, मेरा चैन
ख़ुद ही लुटाता हूं मैं
एहसास जो मुझमें है
वो ज़िंदा बताता है मुझे
क्यूंकि दिल के सारे हालात
यूंही जान जाता हूं मैं
समंदर सी ज़िंदगी हो गर
तो क्या करे 'आवाज़'
कभी चुपके से ख़ुद को
ख़ुद ही पी जाता हूं मैं
'आवाज़'
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