Monday, January 22, 2018

तेरा रंग ओढ़ने को


तेरा रंग मुझपे ओढ़ने को 
मैंने रंग खुद का बदला है 
ये अदा मेरी नहीं है 
ये ढंग मेरे दिल का है 

तू मेरा ख़्याल है 
तू ही एहसास मेरा 
तू ही सोच मेरी 
तू ही अल्फ़ाज़ मेरा 

तुझे मैं लिखूं , तुझे मैं पढूं 
तुझे मेरे दिल में सजाऊं मैं 
गर ऐसा हुआ तो, ये दिल ग़ज़ल 
और शायर ना बन जाऊं मैं

मेरी बातों से जो तेरे
चेहरे का रंग बदल जाता है 
तेरी क़सम फिर से 
वही पहला प्यार हो जाता है 

तेरी आँखों की वो शीरीं ज़ुबां 
जब यूं निगाहों तक पहुंच जाती है 
नज़रों में इक अजीब सी ख़ुमारी 
और कानों में मिश्री सी घुल जाती है 

तेरी अदा खुशबू बन कर 
मेरे ख़्यालों को महका जाती है 
यादों की वो सुंदर बगिया 
और भी हसीन हो जाती है 

तेरी यादें ज्यों ज्यों पुरानी हुईं 
नशा इसका और बढ़ता गया 
मन दीवानों सा झूमता रहा 
और वक़्त हाथों से फिसलता गया 

तू ही बता तेरी किन किन अदाओं को 
अब ये आवाज़ सजाया करे 
जब तू ही मेरा आग़ाज़, तू ही अंजाम है 
तो फिर ये दिल तुझे, कैसे भुलाया करे-२ 

                                                             'आवाज़'

1 comment: