क़लम की तारीकियों से...
क़लम की तारीकियों से रौशन है सारा आलम
और हम हैं जो उजालों में भी राह भटक जाते हैं
गर बुलंदी छूनी है तो सेहर का दामन थाम लो
सियाह रोशनाई ही खींचती है मुक़द्दर की लकीरें
क़लम की तारीकियों से...
अंधेरों से डरना छोड़ दो, उजालों में संभालना सीख लो
ग़ुरूर की लाठी तोड़ दो, हालात में पिघलना सीख लो
झुक कर ही पहाड़ों की बुलंदियों को छुआ है सबने
उनकी सख्तियों को छोड़ दो, बस चढ़ने का हुनर सीख लो
क़लम की तारीकियों से...
उड़ते परिंदों की आँखों में मैंने भी झाँका था कभी
न डर ऊंचाइयों का था, न थी फ़िक्र मंज़िल की कहीं
क्योंकि न लालच मन में है, न हैं हाथों में लकीरें उनके
चलो हम भी झाँक लेते हैं, अपनी-अपनी गिरेबाँ में अभी
क़लम की तारीकियों से रौशन है सारा आलम
और हम हैं जो उजालों में भी राह भटक जाते हैं
क़लम की तारीकियों से रौशन है सारा आलम
"आवाज़"
Nice inspiration
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