मैं आज खुद....
मैं आज खुद की तलाश में निकला हूँ
मैं आज खुद की तलाश में निकला हूँ
मैं आज खुद की तलाश में निकला हूँ
मैं आज खुद की तलाश में निकला हूँ
यह भी सच है की सदियों बाद निकला हूँ
मैं आज खुद की तलाश में निकला हूँ
यह भी सच है की सदियों बाद निकला हूँ
जो क़तरा क़तरा सा बह गया है लम्हा
उस कांच में, ख़ुद सा कोई पाया है तन्हा
शिकन थी पर चेहरे पे थकन अब भी न थी
क्योंकि अपनी परछाईं के साथ निकला हूँ
मैं आज खुद की तलाश में निकला हूँ
दुनिया में एक अजीब सी दौड़ मची है
जो अपना हो न सकेगा, उसी की चाह जगी है
मैं हूँ, या होड़ से बाहर हूँ, कशमकश है दिल में
इसलिए खुद को समझने, तनहा निकला हूँ
देर हुई, ये तो पहले से ही ख़बर थी मुझे
पर दुरुस्त हूँ, अब तक इससे अंजान हूँ मैं
ख्वाहिशें अपनी भी रहीं, कि मशहूर हो जाता
पर मंज़िल पास है या दूर, यह जानने निकला हूँ
यह भी सच है की सदियों बाद निकला हूँ
"आवाज़"
Impressive...umda
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