लो तारीखों की...
लो तारीखों की एक और जमात चली गयी
खुशियों के दिन आये, ग़म की रात चली गयी
कुछ मिले और कुछ यादों के सहारे छोड़ गए हमको
फिर साथ उनके , कल की सारी सौग़ात चली गयी
लो तारीखों की एक और जमात चली गयी......
वादों की रहगुज़र पर दोनों को क़दम साथ रखना था
चांदनी को निहारना था, रौशनी का हाथ पकड़ना था
और साँसों के झोंके ने, जब ज़ुल्फों को आज़ाद किया तो
खबर हमको न थी, उनकी तो यादाश्त चली गयी
लो तारीखों की एक और जमात चली गयी...
वैसे तो भरोसा हमने उनको दिन-रात दिलाया था
मेरे शब्-ओ-रोज़ में तुम ही हो, पर यक़ीन न आया था
जब तलाशियां दिल की लीं, और वहां खुद को पाया फिर
ख्यालों में मेरे, न जाने उनकी कितनी ही बरसात चली गयी
लो तारीखों की एक और जमात चली गयी...
फिर लौटा दो उन यादों को, हकीकत की जहां में
गुज़रें फिर से हमारे लम्हें, मोहब्बत की पनाह में
साँसों में तेरी खुशबू हो, मिश्री हो तेरी हर बयां में
ना! अब ये न कहना कि, ज़िंदगी से वो अवक़ात चली गयी
लो तारीखों की एक और जमात चली गयी
खुशियों के दिन आये, ग़म की रात चली गयी
"आवाज़"
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