हाथों की लकीरों में...
हाथों की लकीरों में तू न था
चाक जिगर था, दिल को सुकूं न था
हाथों की लकीरों में तू न था...
कहते हैं मुहब्बत जुर्रत वालों को मिलती है
हाथ ख़ाली रहते हैं, जिनकी ज़रुरत होती है
अच्छा है! फिर से मुहब्बत को सोचना पड़ा
वरना, बिना वज़ु के इबादत को मैं था खड़ा
हाथों की लकीरों में तू न था...
नाकामियां कई बार तदबीर को उकसाती हैं
और तदबीर से अकसर तक़दीर बदल जाती हैं
हम भी इक बार तदबीर को उकसायेंगे
और हाथों की लकीरों में मुहब्बत भर जायेंगे
और फिर कभी ये न कहेंगे...
हाथों की लकीरों में तू न था
चाक जिगर था, दिल को सुकूं न था
"आवाज़"
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