मैंने यूँही लिखी...
मैंने यूँही लिखी कुछ इबारतें
जो तेरा नाम, तो हसीं ग़ज़ल बन गयी
मैंने यूँही लिखी कुछ इबारतें
जो तेरा नाम आया, तो हसीं ग़ज़ल बन गयी
ख़ता ऐसी की मैंने
दोस्त क्या, दुश्मनों के दिल तक उत्तर गयी
मैंने यूँही लिखी कुछ इबारतें।
शीरीं ज़ुबाँ, दिलकश अदा,
छिड़ा ज़िक्र तो महकी फ़िज़ा बन गयी
उर्दू सी नज़ाक़त नज़र आयी
और अदा बन गयी
यूँही एक बार झाँक ली अपनी गिरेबाँ में मैंने
अरबी सी इबादत नज़र आयी
और तू खुदा बन गयी
मैंने यूँही लिखी कुछ इबारतें।
खुशबू तेरी दिल तक पहुंची
दुनिया हसीं बन गयी
नज़रो का मेरी असर तो देखो
जवां कली खिल गयी
और गुज़रा जब तेरी गली से तो
ये एहसास हुआ मुझको
खोयी थी जो सदियों से
मुझको वो ज़िन्दगी मिल गयी
मैंने यूँही लिखी कुछ इबारतें।
मौजूद जो थी कल में, वो आज याद बन गयी
ख़्वाहिश अपने मिलन की, देखो फ़रियाद बन गयी
अब ख़याल बस यही रखना मेरे हमदम मेरे दोस्त
बदल जाये वो इश्क़ में, दिल की जो आवाज़ बन गयी
जो तेरा नाम, तो हसीं ग़ज़ल बन गयी
"आवाज़"
Bahut sundar
ReplyDelete