Monday, January 30, 2017

Tanhaiyan humein aksar....

तन्हाइयां हमें अक्सर बहका जाती हैं... 

 तन्हाइयां हमें अक्सर बहका जाती हैं
हम, हम नहीं रहतेख्यालों से जब भी 
उनकी यादें गुज़र जाती हैं... 
हाँ! तन्हाइयां हमें अक्सर बहका जाती हैं...

आंखें बंद करूँ तो वो, सपनों में बदल जाती हैं 
खुली हो आंखें तो, एहसास बन छू जाती हैं 
क्या बताऊं कि वो कौन कौन सा रूप दिखलाती हैं 
अपनों को ग़ैर तो कभी ग़ैरों को भी अपना बना जाती हैं 
हाँ! तन्हाइयां हमें अक्सर बहका जाती हैं... 

रातों का आलम तो कुछ और ही हो जाता है 
वो दिन का भी चैन--क़रार ले जाती हैं 
अरमां रह रह के दिल पे दस्तक दे जाते हैं 
और दरवाज़े पार बस, तस्वीर--यार नज़र आती है 
हाँ! तन्हाइयां  हमें अक्सर बहका जाती हैं...

ऐसा नहीं की ये मोड़ सिर्फ जवानी में ही आती है 
इंसान जब भी अकेला हो, तन्हाई बाँहों में सिमट जाती है 
फिर, कभी तबस्सुम तो कभी आंसू बन के बिखर जाती है 
और कभी दिल की बंजर ज़मीं पर, हरियाली बन छा जाती है 
हाँ! तन्हाइयां हमें अक्सर बहका जाती हैं...

हाँ! तन्हाइयां हमें अक्सर बहका जाती हैं
हम, हम नहीं रहतेख्यालों से जब भी 
उनकी यादें गुज़र जाती हैं... 

हाँ! तन्हाइयां हमें अक्सर बहका जाती हैं

"आवाज़"

Inhi Lamhon Mein...

इन्ही लम्हों में... 

कोरे क़ाग़ज़ पे लिख जाएं इन्ही लम्हों में 
यादों की झुरमुठ बनाएं इन्हीं लम्हों में 
हाँ इन्ही लम्हों में...

पंख लगाएं और उड़ जाएं इन्हीं लम्हों में  
पलकें झुकाएं और खो जाएं इन्हीं लम्हों में 
हाँ इन्ही लम्हों में...

आँखों में आंसू ले आएं इन्ही लम्हों में
 अपनों पे हर शय लुटाएं इन्ही लम्हों में
हाँ इन्ही लम्हों में...

बादलों को हाथों से छू जाएं इन्हीं लम्हों में 
खुशियों को मुट्ठी में भर लाएं इन्हीं लम्हों में 
हाँ इन्ही लम्हों में...

ग़म की तपिश को बहलाएं इन्हीं माहों लम्हों में  
मुट्ठी  से खुशियां बरसाएं इन्हीं लम्हों में  
हाँ इन्ही लम्हों में...

 ख़ामोशी  को हम गुनगुनाएं इन्हीं लम्हों में
शोर को 'गुल'  कर जाएं इन लम्हों में 
हाँ इन्ही लम्हों में...

 तकिए पे सर रख जाएं इन्हीं लम्हों में 
सपनो का एक घर बसाएं इन्हीं लम्हों में 
हाँ इन्ही लम्हों में...

यादों में सबको शामिल कर जाएं इन्हीं लम्हों में 
 एक दूजे को पल में जी जाएं इन्हीं लम्हों में   
हाँ इन्ही लम्हों में... 

"आवाज़"

 

Thursday, January 26, 2017

Chalo phir bachche ban jayein...

चलो फिर बच्चे बन जाएं

 चलो फिर बच्चे बन जाएं 
देखो माली चाचा नहीं हैं 
चलो फिर से अमिया, शरीफा, इमली चुराएं 
देखो अम्मी अभी मशगूल हैं 
चलो बैट निकालें, और दो दो हाथ आज़माएं 
चलो फिर बच्चे बन जाएं 

देखो टिफ़िन टाइम होने वाला है 
चलो लंच करें, फिर से खट्टे चूरन चबाएं 
देखो सर भी तो क्लास में नहीं आए 
चलो फिर से, अंताक्षरी की महफ़िल सजाएं 
चलो फिर बच्चे बन जाएं 

 देखो बारिश होने वाली है 
चलो घर वालों से, फिर कोई बहाना बनाएं 
 तेज़ हवा चलने वाली है 
चलो बाग़ से बेर क़दम अमरुद लूट लाएं 
चलो फिर बच्चे बन जाएं 

देखो हम फिर से बड़े हो रहे हैं 
बढ़ते बढ़ते हम, शायद कुछ डर रहे हैं
क्या बढ़ने से बचपना खो जाएगा  फिर से ?
क्या मन से मासूमियत गुम हो जाएगी फिर से?

ऐसा  है, तो मुझे बच्चा ही दो
सपना ही सही, मुझे इसमें ही जीने दो  

"आवाज़"

Wednesday, January 25, 2017

Qalam ki tareekiyon se...

क़लम की तारीकियों से... 
क़लम की तारीकियों से रौशन है सारा आलम 
और हम हैं जो उजालों में भी राह भटक जाते हैं 
गर बुलंदी छूनी है तो सेहर का दामन थाम लो 
सियाह रोशनाई ही खींचती है मुक़द्दर की लकीरें
क़लम की तारीकियों से... 


अंधेरों से डरना छोड़ दो, उजालों में संभालना सीख लो
ग़ुरूर  की लाठी तोड़  दो, हालात में पिघलना सीख लो 
झुक कर ही पहाड़ों की बुलंदियों को छुआ है सबने 
उनकी सख्तियों को छोड़ दो, बस चढ़ने का हुनर सीख लो 
 क़लम की तारीकियों से... 

उड़ते परिंदों की आँखों में मैंने भी झाँका था कभी 
न डर ऊंचाइयों का था, न थी फ़िक्र मंज़िल की कहीं
क्योंकि न लालच मन में है, न हैं हाथों में लकीरें उनके 
चलो हम भी झाँक लेते हैं, अपनी-अपनी गिरेबाँ में अभी  

क़लम की तारीकियों से रौशन है सारा आलम 
और हम हैं जो उजालों में भी राह भटक जाते हैं 
क़लम की तारीकियों से रौशन है सारा आलम 

"आवाज़"

 

Tuesday, January 24, 2017

ajeeb o ghareeb sham thi woh

अजीब ओ गऱीब शाम थी वो... 

 अजीब ओ गऱीब शाम थी वो, पर दिल की  मेरे शान थी वो 
हम लुट रहे थे सर-ए-आम मगर, बन रही मेरी जान थी वो 
अजीब ओ गऱीब शाम थी वो, 

अंजान फ़िज़ाएं थीँ, और रुख़ भी हवाओं का मेरे उलट था 
वो मेरे लिए मानूस थी, पर जो महसूस हुआ वो अजब था 
जैसे अपना कोई बिछड़ गया हो, सदियों पहले इस जहान में
वही आज रु-ब-रु था, मेरे रिश्ते की इस जहान में  
अजीब ओ गऱीब शाम थी वो, 

उधर आसमान सुर्ख से सियाह हो रहा था 
इधर चेहरे से सब कुछ बयां हो रहा था  
एक हलचल सी हो रही थी दोनों तरफ मगर 
ग़म ये कि सिर्फ मेरा ही प्यार र-वां हो रहा था  

 अजीब ओ गऱीब शाम थी वो, पर दिल के मेरी शान थी वो 
हम लुट रहे थे सर-ए-आम मगर, बन रही मेरी जान थी वो 

"आवाज़"

Wednesday, January 18, 2017

Lehron se hawaon ka....

लहरों से हवाओं का मिलन...

लहरों से हवाओं का मिलन, उसको उछाल देता है 
ख़ामोशी के सीने से, चैन-ओ-क़रार निकाल देता है 

लहरों से हवाओं का मिलन...

एक लहर मेरे सीने में भी उठी थी 
उठते ही मुझसे मेरे  दिल की पूछी थी 
आज से पहले तू किसके लिए धड़का था 
नज़रों में सच, जुबां से निकली वो बात झूठी थी 

लहरों से हवाओं का मिलन...

समंदर के सीने में बेताबियाँ सी भर दी थी 
हवाओं की जुर्रत देखो, हद को पार कर दी थी 
पर साँसों को संभालना, हमने सीखा है उनसे 
जो हवाओं से मिलकर लहरों को जन्म देती थी 

लहरों से हवाओं का मिलन...

कुछ राज़ हैं ऐसे जिसे सीने में छुपाना अच्छा है 
ये ख्वाब हैं सारे, यही उनको बताना अच्छा है 
वरना सच भी एक वक़्त में, झूठा सा नज़र आता है 
बुरा होगा तब, जब झूठ भी लगने लगे सच्चा है 

लहरों से हवाओं का मिलन, उसको उछाल देता है 
ख़ामोशी के सीने से, चैन-ओ-क़रार निकाल देता है

"आवाज़"

Tuesday, January 17, 2017

Main aaj khud....

मैं आज खुद.... 
 मैं आज खुद की तलाश में निकला हूँ 
यह भी सच है की सदियों बाद निकला हूँ 

मैं आज खुद की तलाश में निकला हूँ 

जो क़तरा  क़तरा सा बह गया है लम्हा 
उस कांच में, ख़ुद सा कोई पाया है तन्हा 
शिकन थी पर चेहरे पे थकन अब भी थी 
क्योंकि अपनी  परछाईं के साथ निकला हूँ

मैं आज खुद की तलाश में निकला हूँ 

दुनिया में एक अजीब सी दौड़ मची है 
जो अपना हो सकेगा, उसी की चाह जगी है 
मैं हूँ, या होड़ से बाहर हूँ, कशमकश है दिल में 
इसलिए खुद को समझने, तनहा निकला हूँ 

मैं आज खुद की तलाश में निकला हूँ 

देर हुई, ये तो पहले से ही ख़बर थी मुझे 
पर दुरुस्त हूँ, अब तक इससे अंजान हूँ मैं 
ख्वाहिशें अपनी भी रहीं, कि मशहूर हो जाता
पर मंज़िल पास है या दूर, यह जानने निकला हूँ 

मैं आज खुद की तलाश में निकला हूँ 
यह भी सच है की सदियों बाद निकला हूँ 
"आवाज़"