गर यादों का गला घोंट सकता
तो बेशक तुझे भुला देता
यहां तो दर-ओ-दीवार भी
तेरे होने की गवाही देती हैं
हवाएं जब भी गुज़रती हैं इधर से
तेरी खुशबू का पता दे जाती हैं
ज़ुल्फ़ों से जो झटका था तुमने
दरीचे से अब भी वो फुहार चली आती है
तेरे काजल की स्याही का
अब भी तलबगार है ये बदली
लाख बह जाए तूफ़ां भी अगर
दिल पर ये बरस नहीं पाती हैं
पर्दे की आड़ से ज्यों ही
झांकती हैं नज़रें तेरी
आज भी आंखें मेरी
शर्माती हैं, झुक जाती हैं
उधर फ़्रिज पे लगी स्माइली
हू-ब-हू तुझसा ही मुस्काती है
सोफ़े पे पड़ती हैं जब भी सिलवटें
तू यहीं आस-पास नज़र आती है
नलके से जब भी टपकती हैं बूंदें
दौड़ के वहां पहुंच जाता हूं 'आवाज़'
तेरी डांट, वो ख़बरदार उस पल
मुझको तेरी बहुत याद दिलाती है
'आवाज़'
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