Friday, August 18, 2017

sahaare

 सहारे 

मैं, मय के सहारे क्यूं भला 
तन्हा ये राहें क्यूं चला  
दामन जो छूटा हाथों से 
यादों की तपिश में क्यूं जला  
मैं, मय के सहारे क्यूं भला 
तन्हा ये राहें क्यूं चला 
बिजली जो कौंधी क्यूं डरा 
जब बंजर सी मन की है धरा 
दुःख के बादल फिर बरसे ना 
है मन का सागर आंसू से भरा  
मैं, मय के सहारे क्यूं भला 
तन्हा ये राहें क्यूं चला  

ज़ख्मों का रंग तो अब भी है हरा  
और सूरज तू जल के बुझ भी गया 
ढाया है  तूने भी क्या मुझ पे सितम  
या तुझपे भी छा गयी ग़म की घटा 
 
मैं, मय के सहारे क्यूं भला 
तन्हा ये राहें क्यूं चला 





                                                                  "आवाज़"

1 comment:

  1. Bilkul sach kaha...aur sath mein humein Urdu seekhane ko bhi mil jaati hai

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