लम्हों को चुनकर, ख्वाबों का परिंदा ले गया
शोर ग़ुल से दूर, यादों का बाशिंदा ले गया
सुकून चैन, किसपर ज़ेवर सा नहीं सजता
छल को हराकर, वो सादगी को ज़िंदा ले गया
वो पास हो, तो कुछ और भी साथ चलता है
खुशबू साँसों में, दिल में जज़्बात मचलता है
रौनक़-ए-ज़िन्दगी अब वाबस्ता है जिससे वो
कह गया लौटा दूंगा दिल, जो आइंदा ले गया
यादें अब भी छेड़ती हैं तेरी, मेरी ज़ुल्फ़ों को
खुशबू छुपती नहीं, लांघ जाती हैं मुल्कों को
दूरियां मीलों की, एक लम्हे में सिमट आती है
होश-ओ-हवास इस क़दर वो बंदा ले गया
"आवाज़"
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