अब उनको कहाँ
अब उनको, कहाँ याद मेरी आती है
शुक्र है तन्हाई का, उन्हें
मेरे लिए उकसाती है
भीड़ में , यहाँ तो अब हर इंसां तन्हा है
पर वो, खुदको तन्हाई में अकेला पाती है
ख्याल अब क़लम के ज़रिए ज़ाहिर होते हैं
पर वो अब भी , इन हर्फों में छुप जाती है
ज़माने का क्या, उन्हें तो सवाल आते हैं
पर वो सवालों का जवाब भी नहीं बन पाती है
उनके तसव्वुर से ही ज़िंदा हूँ, पर खुश हूँ
अब बस यादों का मैं परिंदा हूँ, पर खुश हूँ
करवटों से, सिलवटों से, जो हालात दिखती है
उन तस्वीरों को बस सोचकर वो मुरझा जाती है
कभी यादों से पहले वो आएगी ऐसा लगता है
ये सांसें यूंही थम जाएंगी ऐसा लगता है
धड़कनें उस दम, तू मेरा हाथ थाम के रखना
प्यार के झोंकों से, हिलती पत्ती उड़ जाती
"आवाज़"
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