Tuesday, August 22, 2017

Kaise main guzar jaun....

कैसे मैं गुज़र जाऊं... 
 
बिन कुछ कहे तेरी गली से, कैसे मैं गुज़र जाऊं
खुद के पैरों में बेड़ियों सी, कैसे मैं जकड़ जाऊं 

एहसास जब गवाही दे,  तो कैसे मैं मुकर जाऊं
 यादों की मोहक सूरत को, कैसे मैं बिसर जाऊं 

 बिन तेरे भी खुश रहूं,  कहां से मैं वो जिगर लाऊं 
मर के भी तुझे देखती रहे, कहां से वो नज़र लाऊं 

दुनिया अब दरम्यां नहीं, कहां से मैं ऐसी खबर लाऊं 
ख्यालों में बस तू गूंजे, मोहब्बत में कैसे ये असर लाऊं 

तेरी 'आवाज़' हूं सुन लेना, यूंही हवा में जो बिखर जाऊं 
तू खुशबू बन के साथ रहना, शायद फिर से मैं संवर जाऊं
"आवाज़"



Saturday, August 19, 2017

Kuchh rishte bun jaun

कुछ रिश्ते बुन जाऊं 
आज भी याद है  मेरा बचपन मुझको
अम्मी ने कुछ तो बुना था 
उंगलियों में एक रंग का 
एहसास सा लिपटा था 
उलझता घूमता यूंही 
उनके हाथों से कुछ अच्छा ही बना था 
शायद कोई रिश्ता था 
जो बड़ी  मुश्किल से सुलझा था 

एक दिन सोचा कुछ मैं भी सुलझाऊं
मैं भी एक अपना सा, 
रिश्ता बुन जाऊं 
फिर कुछ रंग के एहसास जुटाए 
लिपटकर अपनी उंगलियों में 
मैंने भी उसे घुमाए  
सुलझना था, पर ना जाने क्यूं 
वो उलझ सा गया 
बड़े ही नाज़ुक़ थे धागे 
तो मैं सहम सा गया 

पर हारा नहीं,
फिर से एक एहसास लिया 
छुपे थे  सारे रंग जिसमें
वो सफ़ेद शफ़्फ़ाफ़ लिया 
फिर एक सादा रिश्ता तैयार हुआ 
जिसे मैंने, मेरे ही नाम किया  
इस बार मुझे एक बात समझ आई 
हर रिश्ते की होती है अलग बुनाई 

समझ सको, 
तो आप भी एक काम करना 
जहाँ छन जाएं शिकवे गिले 
ऐसा ही कुछ नाम बुनना 

                                              "आवाज़"










Friday, August 18, 2017

sahaare

 सहारे 

मैं, मय के सहारे क्यूं भला 
तन्हा ये राहें क्यूं चला  
दामन जो छूटा हाथों से 
यादों की तपिश में क्यूं जला  
मैं, मय के सहारे क्यूं भला 
तन्हा ये राहें क्यूं चला 
बिजली जो कौंधी क्यूं डरा 
जब बंजर सी मन की है धरा 
दुःख के बादल फिर बरसे ना 
है मन का सागर आंसू से भरा  
मैं, मय के सहारे क्यूं भला 
तन्हा ये राहें क्यूं चला  

ज़ख्मों का रंग तो अब भी है हरा  
और सूरज तू जल के बुझ भी गया 
ढाया है  तूने भी क्या मुझ पे सितम  
या तुझपे भी छा गयी ग़म की घटा 
 
मैं, मय के सहारे क्यूं भला 
तन्हा ये राहें क्यूं चला 





                                                                  "आवाज़"

Wednesday, August 16, 2017

Aaghosh

आग़ोश
  
मैं आग़ोश में न थी,
पर हौले-हौले छू रहा था कोई 
थम सी गयी थी पर मुझमें 
मुसलसल बह रहा था कोई 

चेहरे पे अजब सी मुस्कान थी 
क्योंकि मेरे ग़म पी रहा था कोई 
शुक्रिया अदा भी करती तो कैसे भला
अपने होठों से, मेरे लब सी रहा था कोई 

दुःख तो दामन है ज़िन्दगी का 
ओढ़ती हूं, छुपाती हूं खुद को इससे 
पर तन्हाई के इस अंधियारे में 
मुझमें चमक रहा था कोई 

बेला, चमेली, गुलाब,
 इसकी खुशबू ही तो पहचान है 
पर उसे क्या नाम देती 
जो मुझमें महक रहा था कोई 

                                                   "आवाज़"

Lamhon ko chunkar


लम्हों को चुनकर... 

 लम्हों को चुनकर,  ख्वाबों का परिंदा ले गया 
शोर ग़ुल से दूर, यादों का बाशिंदा ले गया 
सुकून चैन, किसपर ज़ेवर सा नहीं सजता 
छल को हराकर, वो सादगी को ज़िंदा ले गया 

वो पास हो, तो कुछ और भी साथ चलता है 
खुशबू साँसों में, दिल  में जज़्बात मचलता है 
रौनक़-ए-ज़िन्दगी अब वाबस्ता है जिससे वो 
कह गया लौटा दूंगा दिल, जो आइंदा ले गया 

यादें अब भी छेड़ती हैं तेरी, मेरी ज़ुल्फ़ों को 
खुशबू छुपती नहीं, लांघ जाती हैं मुल्कों को 
दूरियां मीलों की, एक लम्हे में सिमट आती है 
 होश-ओ-हवास इस क़दर वो बंदा ले गया
  
                                                                "आवाज़"

Wednesday, August 2, 2017

Ab unko kahan...

अब उनको कहाँ





अब उनकोकहाँ याद मेरी आती है 
शुक्र है तन्हाई का, उन्हें  मेरे लिए उकसाती है
भीड़ में , यहाँ तो अब हर इंसां तन्हा है
पर वो, खुदको तन्हाई में अकेला पाती है 

ख्याल अब क़लम  के ज़रिए ज़ाहिर होते हैं 
पर वो अब भी , इन हर्फों में छुप जाती है  
ज़माने का क्या, उन्हें तो सवाल आते हैं 
पर वो सवालों का जवाब भी नहीं बन पाती है  

उनके तसव्वुर से ही ज़िंदा हूँ, पर खुश हूँ 
अब बस यादों  का मैं परिंदा हूँ, पर खुश हूँ 
करवटों से, सिलवटों सेजो हालात दिखती है
 उन तस्वीरों को बस सोचकर वो मुरझा  जाती है 

कभी यादों से पहले वो आएगी ऐसा लगता है 
ये सांसें यूंही थम जाएंगी ऐसा लगता है 
धड़कनें उस दम, तू मेरा हाथ थाम के रखना 
प्यार के झोंकों से, हिलती पत्ती उड़ जाती
"आवाज़"