हया को अना समझ बैठे हैं...
देखो ना! वो क्या का क्या कर बैठे हैं
हया को, वो मेरी अना समझ बैठे हैं
वैसे तो दिल का यूं भी बुरा नहीं मैं
पर मुझपे वो बिजली गिराए बैठे हैं.
तलब हुई, पर आंखों ने हिमाक़त न की
हिचक इतनी कि नज़रों को झुकाए बैठे हैं
ये आदाब-ए-इश्क़ है, दयार-ए-हुस्न में
कि अपनी चाहतों को, यूं कर दबाए बैठे हैं.
नज़रों को चस्का है, ज़ाएक़-ए-दीदार का
फिर भी फ़िक्र, संसार की लगाए बैठे हैं
ग़लत फ़हमियां, सुपुर्द-ए-ख़ाक कर देती हैं
अपने दिल को ये, सदियों से सिखाए बैठे हैं
धड़कनों की होती, तो उन तक पहुँचती 'आवाज़'
यहां तो लोग, बस कहे पे चले जाते हैं
कौन कैसा है, जानने की मोहलत किसे है पड़ी
मतलब की दुनिया है, बस उसी की लौ लगाए बैठे हैं
'आवाज़'
Agar kahun ye ghazal DIL hai tumhaari abb tk k writing k, toh ghalat na hoga...
ReplyDeleteshukriya...
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