Wednesday, March 8, 2017

Shukriya

चाहता हूं शुक्रिया उनका अदा करता चलूं
चाहता हूं शुक्रिया उनका अदा करता चलूं 
जिनके हाथों संवरा  हूं, सुलझा हूं मैं 
उलझी राहों की ठोकरों से बच बचकर मैं 
जिनकी उंगली पकड़ कर संभाला हूं, समझा हूं मैं 
वो माँ हैं, बहनें, बीवी, बेटी, दोस्त हैं मेरी 
चाहता हूं शुक्रिया उनका अदा करता चलूं 

चाहता हूं हक़ अपना भी अदा करता चलूं  
बच्चे की तरह माँ को दुलारता चलूं 
प्यार से बहनों को भी पुकारता चलूं  
अपनी ज़िन्दगी के हिस्सों को सवांरु और फिर
साथी तेरे क़दमों से क़दम को मिलाता चलूं
चाहता हूं शुक्रिया उनका अदा करता चलूं 

ज़िन्दगी में मेरी, हर रिश्ते का अपना मक़ाम है 
किसी की सुबह है, दिन है तो किसी की शाम है 
प्यार अनमोल है, मोल इसका, न था, न होगा कभी 
सारे अपने हैं, यही अपनापन मेरा अरमान है 
अरमानों के पीछे, हर ग़म को यूंही भुलाता चलूं 
चाहता हूं शुक्रिया उनका अदा करता चलूं 

"आवाज़" 




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