लफ्ज़ न दे साथ तो हर साज़ अधूरा है
जो लफ्ज़ न दे साथ तो हर साज़ अधूरा है
साज़ बिना आवाज़ का हर अंदाज़ अधूरा है
जो लफ्ज़ न दे साथ तो हर साज़ अधूरा है
अंजाम की क्या सोचें अगर आग़ाज़ अधूरा है
कभी मतला अधूरा है, कभी मकता अधूरा है
जो लफ्ज़ न दे साथ तो हर साज़ अधूरा है
वरक़ पलटे ग़ज़ल की तो ये अंदाज़ कहता है
कोई मुस्कुराया है, फिर क्यों ये संसार अधूरा है
जो लफ्ज़ न दे साथ तो हर साज़ अधूरा है
आफ़ताब न हो मद्धम तो माहताब अधूरा है
रात अधूरी है, रातों का हर ख़्वाब अधूरा है
जो लफ्ज़ न दे साथ तो हर साज़ अधूरा है
पायल जो न छनके तो हर राग अधूरा है
इश्क़ के अफ़साने का हर बाब अधूरा है
जो लफ्ज़ न दे साथ तो हर साज़ अधूरा है
कल खो गया जो यार मेरा तो आज अधूरा है
साज़ बिना आवाज़ का हर अंदाज़ अधूरा है
जो लफ्ज़ न दे साथ तो हर साज़ अधूरा है
"आवाज़"
No comments:
Post a Comment