Thursday, March 2, 2017

Lafz na de sath toh....

लफ्ज़ न दे साथ तो हर साज़ अधूरा है 
जो लफ्ज़ न दे साथ तो हर साज़ अधूरा है 
साज़ बिना आवाज़ का हर अंदाज़ अधूरा है 
जो लफ्ज़ न दे साथ तो हर साज़ अधूरा है 

अंजाम की क्या सोचें अगर आग़ाज़ अधूरा है 
कभी मतला अधूरा है, कभी मकता अधूरा है 
जो लफ्ज़ न दे साथ तो हर साज़ अधूरा है 

वरक़ पलटे ग़ज़ल की तो ये अंदाज़ कहता है 
कोई मुस्कुराया है, फिर क्यों ये संसार अधूरा  है 
जो लफ्ज़ न दे साथ तो हर साज़ अधूरा है 

आफ़ताब न हो मद्धम तो माहताब अधूरा है
रात अधूरी है, रातों का हर ख़्वाब अधूरा है  
जो लफ्ज़ न दे साथ तो हर साज़ अधूरा है 

पायल जो न छनके तो हर राग अधूरा है 
इश्क़ के अफ़साने का हर बाब अधूरा है 
जो लफ्ज़ न दे साथ तो हर साज़ अधूरा है
  
कल खो गया जो यार मेरा तो आज अधूरा है  
साज़ बिना आवाज़ का हर अंदाज़ अधूरा है 
जो लफ्ज़ न दे साथ तो हर साज़ अधूरा है 

"आवाज़"
 


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