यह सोचता हूं अक्सर...
यह सोचता हूं अक्सर...
यह सोचता हूं अक्सर, उस शख्स का
यह एहसान कैसे चुकाऊं मैं
मुझे, मुझसे ही प्यार करना सिखा दिया उसने
यह उसको कैसे समझाऊं मैं
मेरे ही दिल की धड़कनें सुनाकर उसने
मुझको ही मेरी आवाज़ का दीवाना बना दिया
यह उसको कैसे बतलाऊं मैं
यह सोचता हूं अक्सर...
दूर रहकर भी हम पास हैं, पर डर लगता है
पास आकर खो न जाऊं मैं
यादों के उस लम्हें में जाकर, दिल पूछता है
चंद खुशियों को ले जाऊं मैं
ज़िन्दगी भी मुझसे कहती है अक्सर, तुझे चाहने के लिए
मुझे तेरी ज़रुरत भी नहीं
यह क्या रस्म-इ-उल्फ़त है "आवाज़", उस तक जाऊं
फिर भी टकरा के लौट आऊं मैं
यह सोचता हूं अक्सर, उस शख्स का
यह एहसान कैसे चुकाऊं मैं
यह सोचता हूं अक्सर...
"आवाज़"
No comments:
Post a Comment