ख्वाहिशें उनकी भी थीं...
ख्वाहिशें उनकी भी थीं कि अपनी कहें
इक़रार मेरा भी था कि उनकी सुनें
ख्वाहिशें उनकी भी थीं...
ख्वाहिशें उनकी भी थीं कि अपनी कहें
इक़रार मेरा भी था कि उनकी सुनें
पर फासला मीलों का होता, तो तय कर लेता
दिल की दूरियां हैं, अब क्या कहें किसकी सुनें
ख्वाहिशें उनकी भी थीं...
ऐसा भी नहीं की दूरियों का अब इलाज नहीं
ये भी ग़लत होगा गर कह दूं, दिल में कोई राज़ नहीं
चलो राज़ को अब फ़ाश करें, इश्क़ का फिर से आग़ाज़ करें
इसी लम्हा, इज़हार करें फिर धड़कनों को परवाज़ करें
ख्वाहिशें उनकी भी थीं...
जी चाहता है अब, ख़ुद को परिंदा परिंदा बना लूं
आकाश को छू लूं, बादल को तेरा रिदा बना लूं
सर पर सजा कर, तेरे हुस्न को आज उजला बना दूं
एहसास को जगा दूं तेरे, तुझे फिर से ज़िंदा बना लूं
ख्वाहिशें उनकी भी थीं कि अपनी कहें
इक़रार मेरा भी था कि उनकी सुनें
ख्वाहिशें उनकी भी थीं...
"आवाज़"
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