Saturday, July 21, 2018

यादों से तर

यहां हर लम्हे का 
अगले ही पल में गुज़र होता है 
हाथ ख़ाली दिखता तो है 
मगर यादों से वो तर होता है 

उस लम्हे पर भी 
कुछ बक़ाया रहता नहीं अपना 
यादें देकर हमें वो
हमारा चुकता हिसाब कर देता है 

खुशियां या ग़म, जो मयस्सर हो 
बेशक तक़दीर-ए-लम्हा है 
पर हमारे हाथों की लकीरों का भी 
यहां असर होता है

मुलाक़ातों का तुझसे 
अब क्या कहें ऐ 'आवाज़'
रस्ता भूल भी जाऊं तो  
दिल उसी के घर पहुंचाता है 

                                       'आवाज़'




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