यहां हर लम्हे का
अगले ही पल में गुज़र होता है
हाथ ख़ाली दिखता तो है
मगर यादों से वो तर होता है
उस लम्हे पर भी
कुछ बक़ाया रहता नहीं अपना
यादें देकर हमें वो
हमारा चुकता हिसाब कर देता है
खुशियां या ग़म, जो मयस्सर हो
बेशक तक़दीर-ए-लम्हा है
पर हमारे हाथों की लकीरों का भी
यहां असर होता है
मुलाक़ातों का तुझसे
अब क्या कहें ऐ 'आवाज़'
रस्ता भूल भी जाऊं तो
दिल उसी के घर पहुंचाता है
'आवाज़'
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