सपने में मैंने हसीं ख़्वाब देखा है
सोच कर ज़ेहन हैरां था मेरा, मगर
सुना है, दिल का भी अपना दिमाग़ होता है
अब समझा, दिल यह ज़ेहन पे ग़ालिब क्यूं है
यहां तो, दो दिमाग़ों ने क़ब्ज़ा जमा रखा है
पहले ही दो दिलों से परेशां था मैं 'आ-दिल'
इक नाम में है, तो दूजा सीने में छुपा रखा है
दिल ने बचपना किया होगा
क़सम से अब मैं न कभी यह मानूंगा
ग़लती से अगर, जो मिस्टेक हुई होगी
उसे भी अब तो मैं, ख़ता ही जानूंगा
सरेंडर करते हुए :-
ना! अब तो दिल की ही सुननी होगी 'आवाज़'
पहले ही जद्दोजेहद ने परवान चढ़ा रखा है
दिल अपने दिमाग़ से चलता तो भी मना लेता
पर वहां तो मैंने अपनी 'बीवी' को बिठा रखा है
'आवाज़'
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