Monday, May 14, 2018

'मदर्स डे'


कल हर तरफ शोर सुना मैंने 
पता चला 'मदर्स डे' था 
जी भर इज़हार किया सब ने 
शायद वो माँ के लिए प्यार ही था 

शायद फिर से, अब पूरे साल
माँ को इस बात का इंतज़ार रहे 
फिर से आए उसका लाडला 
गले लगाए, प्यार का इज़हार करे 

कल की ख़ुशी का भी वो 
आज में लुत्फ़ उठा लेती है 
सांसें हैं,  क्या खबर कल को 
चलती हैं या रुक जाती हैं 

माँ के लिए हम इज़हार करें 
तो शोर हो ही जाता है 
ममता कुछ भी कर ले 
वो इग्नोर हो ही जाता है 

माँ जब नींदें सुलाती है 
तो हमें ख़बर तक नहीं होती 
गर वो वक़्त पे जगा दे 
तो हंगामा हो जाता है 

 माँ अपना निवाला खिला दे 
भनक तक नहीं लगती हमें 
हमें वक़्त पे रोटी  ना मिल पाए 
तो  कोहराम सा हो जाता है 

माँ कहाँ दौलत ढूंढती है कभी
हमारे दो पल मिल जाएं, तो खुश 
कहाँ चाहत शहद-मिठाई की है 
हमसे दो मीठे बोल मिल जाएं, तो खुश 

माँ प्यार की वो दरिया है 'आवाज़'
जो खामोश पर मुसलसल बहती है 
हम औलाद वो मौज-ए-दरिया हैं 
जो बेमतलब ख़्वाह-मख़्वाह उछलती है 
                                                     'आवाज़' 



Saturday, May 12, 2018

दिल का भी अपना दिमाग़ होता है...

रात भर नींद तक आई नहीं, फिर भी 
सपने में मैंने हसीं ख़्वाब देखा है 
सोच कर ज़ेहन हैरां था मेरा, मगर 
सुना है, दिल का भी अपना दिमाग़ होता है 

अब समझा, दिल यह ज़ेहन पे ग़ालिब क्यूं है 
यहां तो, दो दिमाग़ों ने क़ब्ज़ा जमा रखा है 
पहले ही दो दिलों से परेशां था मैं 'आ-दिल'
इक नाम में है, तो दूजा सीने में छुपा रखा है

दिल ने बचपना किया होगा 
क़सम से अब मैं न कभी यह मानूंगा 
ग़लती से अगर, जो मिस्टेक हुई होगी 
उसे भी अब तो मैं, ख़ता ही जानूंगा
सरेंडर करते हुए :-
ना! अब तो दिल की ही सुननी होगी 'आवाज़'
पहले ही जद्दोजेहद ने परवान चढ़ा रखा है 
दिल अपने दिमाग़ से चलता तो भी मना लेता
पर वहां तो मैंने अपनी 'बीवी' को बिठा रखा है 
                                                                                                 'आवाज़'