जितना ख़ाली था
उससे कहीं ज़्यादा भरा सा हो गया हूं
तुझे छूते ही मैं
पतझड़ में भी, हरा सा हो गया हूं
कितने मौसम आए-गए मगर
उल्फ़त के इस मौसम में
जितना खोटा था मैं
उससे कहीं ज़्यादा खरा सा हो गया हूं
रिश्तों को सींचते-सींचते
बिखर सा गया था
तुझसे मिलते ही मैं
सिमटकर ज़रा सा हो गया हूं
हवाएं जो तेरी ज़ुल्फ़ों को छूकर
पहुंची हैं मुझ तक
उससे लिपटकर मैं 'आवाज़ '
बहका हूं, इक नशा सा हो गया हूं
'आवाज़ '
उससे कहीं ज़्यादा भरा सा हो गया हूं
तुझे छूते ही मैं
पतझड़ में भी, हरा सा हो गया हूं
कितने मौसम आए-गए मगर
उल्फ़त के इस मौसम में
जितना खोटा था मैं
उससे कहीं ज़्यादा खरा सा हो गया हूं
रिश्तों को सींचते-सींचते
बिखर सा गया था
तुझसे मिलते ही मैं
सिमटकर ज़रा सा हो गया हूं
हवाएं जो तेरी ज़ुल्फ़ों को छूकर
पहुंची हैं मुझ तक
उससे लिपटकर मैं 'आवाज़ '
बहका हूं, इक नशा सा हो गया हूं
'आवाज़ '