awaz ki ghazal
Friday, November 10, 2017
निगाहें मुड़ देखती हैं
आगे बढ़ता जाता हूँ पर
निगाहें मुड़ मुड़ यूं देखती क्यूं हैं
राहें मेरी तो वही हैं लेकिन
अंदेखी अंजानी सी लगती क्यूं हैं
'आवाज़'
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